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________________ मरु-गुर्जर जैन साहित्य ५३५ हैं। इनका विशेष विवरण जानने के लिए जै० गु० क० भाग १ पृ० ६६ और भाग ३ पृ. ५०२ देखा जाय । हर्षकलश या हर्षकुल (१)-आप तपागच्छीय हेमविमलसूरि के शिष्य कलचरण के शिष्य थे। आपने सं० १५५७ में 'वसुदेव चौपइ' की रचना लासनगर में की। इसकी एक प्रति में रचना सम्बन्धी विवरण इस प्रकार दिया गया है : 'वरलासनयर पूरिहरसि, सय पन्नर सत्तावन वरसइ, कुलचरण पंडित गुण सीस, कहइ हरषकलस निसदीस ।' दूसरी प्रति में हरषकलश के स्थान पर हर्षकुल नाम मिलता है, यथा 'वर लास नयरि धरि हरिस, सय पनर सत्तावन वरिस, कुल चरण सुपंडित सीस, कहइ, हरषकुल निसदीस ।' हर्षकुल ने वाक्यप्रकाश पर टीका लिखी है अतः सही नाम हर्षकुल ही मालूम पड़ता है । ३५८ कड़ी की यह रचना प्रायः दोहा और चौपाई छन्द में लिखी गई है । इसमें यदुवंशी वसुदेव का इतिवृत्त है । इसकी भाषा स्वाभाविक मरुगुर्जर है । नमूना देखिये :आदि 'सकल मनोरथ सिद्धि कर, धुरि चउवीस जिणिंद, पय पणमि सुभावि करी, भवियण नयणानंद । जे वसुदेव सोहामणी, यादव कुलि सिणगार, चरित्र रचूं हूं तेहनूं सुणियो अतिहि उदार ।' इसमें गुरु परम्परा के अन्तर्गत लक्ष्मीसागर, सुमतिसाधु और हेमविमलसूरि का उल्लेख किया गया है। ___ हर्षकुल (२)-एक हर्षकुल नामक अन्य कवि १६ वीं शताब्दी में हुए जो पुण्यसागर के शिष्य थे। आपने 'महो० श्री पुण्यसागर गुरु गीतम' की रचना की है जो ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह में प्रकाशित है। यह ६ छंदों की लघु रचना है जो राग सूहव में निबद्ध है, इसमें पुण्यसागर को गुरु बताया गया है, उदाहरणार्थ देखिये :१. श्री देसाई--जै० गु० कवि-भाग १, पृ० १०२ २. वही, भाग ३, पृ० ५२७-५२८ ३. वही, भाग १, पृ० १०२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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