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________________ ५३४ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास गजसुकुमाल के अन्त में लेखक ने अपना नाम संजिममूरति लिखा है, यथा सिद्धमेद वरसह मुनिचन्द, देवकोटि माहे जिमचन्द, संजिममूरति ते चिरनंदइ, गजसुकुमाल सदा जउ बंदइ।। इससे लगता है कि लेखक अपना नाम संयमपूर्ति, संजिममूरति और संजिम भी लिखता था और एक ही व्यक्ति हो सकता है, जहाँ तक गुरुओं की समस्या है, ऐसा लगता है कि संयममूर्ति वाचक कमलमेरु के नहीं बल्कि विनयमूर्ति उपाध्याय के ही शिष्य थे। गजसुकुमाल और उदाई भी ऋषि थे, अतः रचना के विषय वस्तु और अन्य विवरणों जैसे भाषा शैली, रचना काल आदि के आधार पर इन तीनों रचनाओं के कर्ता एक ही कवि संयममूर्ति मालूम पड़ते हैं। कलावती चौपइ का प्रथम छंद निम्नाङ्कित है-- 'तित्थेसर चुवीसमउ, वीर जिणंदह देव, सिद्धरथ राय कुलतिल उ सारउ सुरनरसेव । रचना तिथि 'संवत पनर चउराणसार, जेठ सुदी त्रीजइ बुधवार' रचीयउ अह उपशम भंडार, श्री विधिपक्ष गच्छ उदार । गजसुकुमाल सन्धि का आदि छन्द देखिये पणमवि स्वामी नेमि जिणंद, जस सेवइ सुर नरवइ इंद, गजसुकुमाल संधि मनरंगइ, पमणि जिम अंतगड अंगइ। इनकी भाषा शैली में समानता है। उदाइ राजर्षिसंधि और गजसुकुमाल संधि की काव्य विधा में भी समानता है। अतः बहुत सम्भावना है कि ये तीनों रचनायें एक ही कवि की हों। __उदाईराजर्षिसंधि की प्रतिलिपि के आधार पर देसाई ने इसका विवरण १७ वीं शताब्दी में दिया है किन्तु वे इसकी मूल रचना १६ वीं शताब्दी की मानने के पक्ष में हैं। संवेगसुन्दर ( उपाध्याय)-आप जयसुन्दर उपाध्याय के शिष्य थे। आपकी रचना सारशिखामणरास सं० १५४८ का उल्लेख सर्वांगसुन्दर के नाम के साथ पहले किया जा चुका है। ये दोनों नाम एक ही व्यक्ति के १. श्री देसाई-जे० गु० क०-भाग ३, ५० ६०५ २. वही, भाग १, पृ० ४६२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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