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________________ मरु-गुर्जर जैन साहित्य ५३१ इसमें रचनाकाल एवं स्थान इन पंक्तियों द्वारा बताया गया है : 'अ चसिमाँ बोलना अर्थ ऐकसु ओक, श्री सोम विमलसूरि जपंइ करि विवेक । श्री विक्रम नप श्री संवत्सर शतसोल, बत्रीस श्रावणि सुद सातमि रंगरोल । नक्षत्र शुभ स्वाति अहमदावादि अर्थ, रचिया ओ भणता सीझइ सधला अर्थ । उपरोक्त उद्धरणों से लेखक की काव्यक्षमता का अनुमान सहृदय अवश्य लगा सकेंगे और समझेंगे कि आप एक श्रेष्ठ कवि थे। सौभाग्यसागरसूरि शिष्य -सौभाग्यसागर बड़तपगच्छीय लब्धिसागरसूरि के शिष्य धनरत्नसूरि के शिष्य थे। इनके किसी अज्ञात शिष्य ने सं० १५७८ दमण में 'चम्पकमालारास' नामक काव्य लिखा। सम्पूर्ण रास दोहेचौपाइयों में लिखा गया है। इसमें चम्पकमाला के सतीत्व की स्तुति की गई है। इसका प्रथम दोहा देखिये : 'गणहर मुख्य इग्यारह गुरु गोयम प्रणमेवि, चंपकमाला सती तणुचरीय भणु संषेवि ।" इसमें रचनाकाल का उल्लेख निम्नवत् है : 'संवत पनर अठोतरे ओ मा० उज्ज्वल आसोमास ।' इसमें कवि ने अपनी गुरु परम्परा बताकर अपने को सौभाग्यसागर का शिष्य कहा है । दोहा, चौपाई के अलावा इसमें पाँच-छह वस्तुछंद भी हैं । एक उदाहरण लीजिये थोडइदिन सीख्यउघणू अ, सवि रहि सउपास, चउरासी आसण भला , कामरंग अभ्यास । पिंगल भरह विचार सार, नाटिक षट्भाषा चतुरिम गुहिर गंबीर व्रख, अहनी शाषा ।' कवि ने अपनी भाषा को षभाषा कहा है। प्राचीन काल से वस्तुतः 'षट्भाषा' की परम्परा चलती रही जो हिन्दी में रीतिकाल तक मिलती १. श्री देसाई-जै० गु० कवि-भाग ३, पृ० ५७३ २. वही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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