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मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास चंपकश्रेष्ठिरास ( सं० १६२२) का रचनाकाल कवि ने इन शब्दों में बताया है :
'तेणइ रचीउ रास रसाल रे, वरनयर वइराटइ विशाल,
वरस बाहु नयने रस चंदरे संवत्सर इणि इह नाणिइ । इस रास में दान का माहात्म्य श्रेष्ठि चंपक के चरित्र के आधार पर स्पष्ट किया गया है, यथा :
'इम दाननउ महिमा जाणी रे, दान देयो भवीयण प्राणी,
धन सारथ वाहि घृत दानि रे, लहिउ जिनवर पद बहुमानि । दान के लिए प्रसिद्ध व्यक्तियों जैसे शालिभद्र, चन्दनबाला आदि का भी दृष्टान्त यथावसर दिया गया है। कवि का भाषा पर उत्तम अधिकार प्रतीत होता है। मंगलाचरण से दो छंद उदाहरणार्थ प्रस्तुत हैं -
'कमलनयन तनया विमल कमल कमण्डल जुत्त, कम लिनयन कमलामुखी, कवि कमलादिउपुत्त । हंसवाहनि सरसती, हंसगामिनि कवि मात,
हंसवणि सोहइ सदा, हंस समतेज विख्यात ।' छुल्लककुमारास' सं० १६३३ अहमदाबाद में लिखा गया। इसमें क्षुल्लकऋषि का आदर्श चरित्र चित्रित किया गया है। इसका रचनाकाल इस प्रकार बताया है
संवत्सर सोलतैत्रीस भाद्रवा वदि आठमिदीस,
श्रीनेमि जिणेसर सामी, तसु नामि नवनिधि पामी।" छोटी रचनाओं की प्रतिनिधि के रूप में 'चसिमा शब्दना १०१ अर्थनी संझाय' का संक्षिप्त विवरण दिया जा रहा है। यह क्षुल्लककुमाररास से एक वर्ष पूर्व अर्थात् सं० १६३२ अहमदाबाद में लिखी गई। इसका आदि देखिये :'प्रणमउं परम पुरुषपरभावि, मनोरथ सीझइ जास प्रभावि, अविरल वाणी सदा वरसति, सरसति मां वरसति । मोटु भारती नु भण्डार, शब्द रयणनउ जिहां नहीं पार,
जेहथी लहीइ अर्थ अनेक, चसिमां शतहुं लेइ एक ।' १. श्री देसाई-जै० गु० क०-भाग ३, प० ६५० २. वही, भाग १, प० १८७ ३. वही, भाग ३, पृ० ६५२
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