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- गुर्जर जैन साहित्य
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'धम्मिलरास' को श्री मो० द० देसाई ने सं० १५९१ की रचना बताया है । इस रास में रचनाकाल इस प्रकार दिया गया है :
'संवत् चन्द्रनिधान वली तिथि सिउं करी अ प्रधान, नोस मास शुदि सार, वली पडवे आदित्यवार ।'
इसमें कवि ने अपनी गुरु परम्परा के अन्तर्गत रत्नशेखर, लक्ष्मीसागर, सुमतिसाधु हेमविमल और अपने गुरु सौभाग्यहर्ष का सादर स्मरण किया । भाषा के नमूने के लिए आरम्भ की कुछ पंक्तियाँ यहां दी जा रही हैं:
'सरसति मझ मति दिउ धणी, आणी अंग उछाह, पय पंकज सेवई सदा, जेहनई सुरनर नाह ।
आदि संति श्री नेमि जिन, प्रगट पास जिनचन्द, सयल ऋषि मंगल करण प्रणमुं वीर जिणंद | 2
'श्रेणिकरास' प्रकाशित रचना है । इसे अहमदाबाद से शा० छोटालाल मगनलाल ने प्रकाशित किया है । रचनाकाल इस प्रकार कहा गया है :
-:
'भुवन आकाश हेमकर कलाओ मा० संवत हि नाण, भाद्रवा सुद सोहामणि ओ मा० पडवे चडयो प्रमाण ।
यह रास कुमारपाल द्वारा स्थापित कुमारगिरि नगर में लिखा गया । इसमें मगध के प्रसिद्ध सम्राट विम्बसार (श्रेणिक) का आख्यान वर्णित है । कवि ने इसे रसाल कहा है और रचना को भरसक सरस बनाने का प्रयास भी किया है । भाषा और काव्यशैली के उदाहरणार्थ अन्तिम चार पंक्तियाँ देखिये :
'सुणी जे नरनारी गायसे ओ मा० सुणसे आणि रंग, ने सुख संपदा पामसे ओ मा० भोग भलीपरे चंग ज्यां लगे मेरु महीधर ओ मा० ज्यां लगे शशधर तार, त्यां लगे रास चिरन्जय ओ मा० नित्य मंगल जयकार । *
१. श्री देसाई - जै० गु० क० - भाग ३, पृ० ६४९, भाग १, पृ० १८६ २. श्री देसाई - जे० गु० क०- भाग ३, पृ० ६४९
३. वही, पृ० १८५ ४. वही
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