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मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास था और आपने आनन्दविमल के चरित्र पर आधारित 'आनन्दविमलसूरि संज्झाय' सं० १५९६ में लिखा क्योंकि उसी वर्ष आनन्दविमलसरि चैत्र शुदी सप्तमी को स्वर्गवासी हए थे । सोमविमलसरि की १६ वीं शताब्दी में लिखी यहीं एक कृति है शेष रचनायें १७वीं शताब्दी में आती है किन्तु उनका संक्षिप्त परिचय यहीं दिया जा रहा है।
जीवनवृत्त - सोमविमलसूरि के शिष्य आणंदसोम ने सं० १६१९ में 'सोमविमलसूरिरास' लिखा है । इस रास के आधार पर सूरि जी का संक्षिप्त जीवनवृत्त मालूम होता है। आप खंभात निवासी प्रसिद्ध मंत्री समधर के वंशज रूपवंत की पत्नी अमरादे की कुक्षि से सं० १५७० में पैदा हुए थे। आपका मूल नाम जसवंत था। हेमविमलसूरि के प्रवचन से इन्हें वैराग्य हुआ। उन्होंने ही दीक्षा देकर बालक का नाम सोमविमल रखा। इन्होंने संयम, ब्रत, विद्याभ्यास के पश्चात् जब वाचक की पदवी पाई तो बड़ा उत्सव हुआ और लोगों को पाँच-पाँच सेर लड्डू भरी थालें बाँटी गई थीं। सं० १५९४ में आप आचार्य पद पर प्रतिष्ठित हए और सं० १६३७ में स्वर्गवासी हुए। इस प्रकार आप १६वीं और १७वीं शताब्दी के मध्य विद्यमान थे। ____ आप एक श्रेष्ठ साहित्यकार थे। आपकी प्रमुख रचनायें 'आनन्दविमलसूरि स्वाध्याय', 'श्रेणिकरास' (सम्यक्त्वसाररास) सं०१६०३ (कुमारगिरि), 'धम्मिलरास' सं० १६१५ (कहीं-कहीं सं० १५९१) खंभात, 'चंपकश्रेष्ठीरास' सं० १६२२ अहमदाबाद और 'क्षुल्लककुमाररास' सं० १६३३ अहमदाबाद हैं। इनके अलावा 'कुमारगिरिमंडणश्रीशांतिनाथस्तवन', चसिमां शब्दना १०१ अर्थ नी संज्झाय सं० १६३२ और मनुष्यभवोपरि दशदृष्टान्तनांगीत आदि कई छोटी रचनायें भी प्राप्त हैं। रचनाओं की विस्तत सूची, विषयवस्तु स्थापना की शैली तथा भाषा-संरचना को देखते हए आप १६वीं शताब्दी के अन्त और १७वीं शताब्दी के पर्वार्द्ध के एक श्रेष्ठ कवि सिद्ध होते हैं। आपकी लिखी हुई १६वीं शताब्दी की प्रथम रचना है :-'आनन्दविमलसूरि सज्झाय' जो मुनि जिनविजय द्वारा संपादित 'ऐतिहासिक जैन गुर्जर काव्यसंचय में प्रकाशित है। इससे पता चलता है कि आनन्दविमल परिवार में विजयदानसूरि, विद्यासागर उपाध्याय, अमरहर्ष और विमलभाव आदि योग्य विद्वान् थे। विनयभाव ने भी आनन्दविमलसूरि पर दो स्वाध्याय लिखे हैं जो ऐ० ज० गु० काव्यसंचय में प्रकाशित हैं। १. सं० मुनिजिन विजय-ऐ० ज० काव्य संचय
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