SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 543
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५२६ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास दस सय चउवीसहिं गये, उथापिउ चेइय वासू अ, श्री जिन शासनि थापिउ वसितिहिं सुविहित मुनि (वर) वासू थे। इसके अन्त की एकाधपंक्ति खण्डित है यथा 'आराधतउ विधि खरतर सं०...' इम भणिइ भगतिहि सोमकुंजर जंम चन्द-दिणंदउ ।'' सोमचन्द्र-आप नागेन्द्रगच्छीय गुणदेवसूरि एवं गुणरत्नसूरि के शिष्य थे। आपने सं० १५२० के आसपास 'कामदेवरास' लिखा। आपकी दूसरी रचना 'सुदर्शनरास' का रचनाकाल नहीं ज्ञात हो सका है। कामदेवरास की प्रारम्भिक पंक्तियां प्रस्तुत हैं : 'अरिहंत सिद्धनन्वयया पय-पंकय पणमिउण भावेण, मागेमि मंगलंवरा सुहकरगें दुरियडहरणं । इसमें कवि ने आचार्य गुणदेव तथा गुणरत्न का उल्लेख किया है, तथा अन्त में लिखा है : 'भावना भावइ दोष जावइ पाप पावइ भव थकी, दान देई दीख लेई कठिन कर्म क्षयी करी । बहुलोक तारी कुगति वारी मुगति रामा रसिधरी, इम कामदेव कुंवरनी परि जैनधर्म जिं के करइं।' सयल संध बखाणीइ, कवि सोमचन्द भदंत, जे सुणइ पभणइरास अ, तसु प्रसन्न श्री अरिहंत ।३१४। इसके प्रारम्भ के कुछ छन्द प्राकृत भाषा में हैं, उसके बाद इस रास में अन्त तक मरुगुर्जर भाषा का प्रयोग किया गया है । सुदर्शनरास भी उसी प्रति में एकत्र मिला जिसमें कामदेवरास है, अतः इसे भी सोमचन्द्र की ही कृति समझा जाता है। इसकी भाषा शैली भी प्राकृताभास और पुरातनता लिए हुए है अतः दोनों कृतियों का एक ही लेखक प्रतीत होता है। सुदर्शनरास का प्रारम्भिक छन्द इस दृष्टि से अवलोकनीय है : 'पहिलङ प्रणमिसि अनुक्रमई मे गणहर चउवीस, पछइ शासन देवता, अनेह नामू सीस। समरीय सामिणि सारदा अ, सानिधि संभारु' १. देसाई-जै० गु० क०-भाग ३, खंड २ पृ० १४९०-९१ २. वही, पृ० ४८५.४८६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy