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मरु-गुर्जर जैन साहित्य
कोइल करइ टहुकडाए, मधुकर झंकारफूली, जातज वृक्ष तणीथे वनह मझार वन देखी मुनि राउ मणि । हां नही मुझ काज ब्रह्मचार यतिवर रहितु अविलाज | महारानी अपने रुपवान पति को धोखा देकर कोढ़ी के पास जाती है तो कवि को नारी चरित्र पर कुछ कहने का अवसर मिलता हैं । वे लिखते हैं :
नारी विसहर वेल, नर वंचेवाए धडिए, नारीय नामज मोहल नारी नरकमतो तडी ए, कुटिल पणानी खाणि, नारी नीचह गामिनी ए सांचु न बोलिवाणि बाधिण सापिण अगिन शिखाये । "
नारी सम्बन्धी ये उद्गार भक्तिकालीन अन्य सन्तों के स्वर से भिन्न गहीं है । इनकी भाषा पर गुजराती का प्रभाव स्पष्ट दिखाई पड़ता है ।
'आदिनाथ विनती' एक लघु स्तवन है जिसमें आदिनाथ का यशोगान किया गया है भक्ति भाव का एक उदाहरण देखिये :
'तिणि कारणि तुझ पय कमलो सरण पयवउ हेव, राखि क्रिया करे महरीय राव किं केव । नवनिधि जिस धरिसंपजिए अहनिशिजपता नाम ।'
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' त्रेपन क्रियागीत' में श्रावकों के पालने योग्य त्रेपन क्रियाओं की विशेषता बताई गई है । 'ऋषभनाथ की धूल' में प्रथम तीर्थङ्कर ऋषभदेव के संक्षिप्त जीवन कथा पर प्रकाश डाला गया है । इसमें जन प्रचलित सरल भाषा का प्रयोग किया गया है । आपने अपने काव्यों में जैनदर्शन के प्रमुख सिद्धान्त अहिंसा एवं अनेकान्त का विभिन्न कथाओं के माध्यम से प्रतिपादन किया है । इनकी भक्तिकाव्य की रचना भी बड़ी भावनापूर्ण है । आप मरुगुर्जर भक्ति साहित्य के श्रेष्ठ लेखकों में थे ।
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सोमकु जर – आपने सं० १५१४ से १५३० के बीच 'खरतरगच्छ पट्टावली' लिखी । यह प्रकाशित है। इसमें खरतरगच्छ के मुनियों का ऐतिहासिक क्रम से संक्षिप्त परिचय दिया गया है । इनकी भाषा का नमूना देखने के लिए इसके प्रारम्भ की कुछ पंक्तियां प्रस्तुत है 'धन धन जिण ( शासन) पातग-नाशन, त्रिभुवन गरुअउ गहगह से, जसु तषउ जसुवाउ गंगाजल, निरमल महिअले महमह अ । १. कासलीवाल - पूर्वोक्त पृ० ४८
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