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५२४ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास सम्बन्ध में अधिक जानकारी प्राप्त नहीं है किन्तु आप सं० १५१८ तक भट्टारक बन चुके थे। आप उद्भट विद्वान्, श्रेष्ठ साहित्यकार एवं उत्कृष्ट संत थे । संस्कृत, प्राकृत, मरुगुर्जर आदि भाषा के ज्ञाता थे। आपने राज. स्थान एवं गुजरात में निरन्तर भ्रमण कर जनसाधारण के बीच ज्ञान, धर्म, तप और संयम का संदेश प्रसारित किया। आपने अनेक मन्दिरों की प्रतिष्ठा कराई, सांस्कृतिक समारोहों का नेतृत्व किया। इनका रचनाकाल सं० १५२६ से सं० १५४० तक माना गया है। इनके शिष्यों में यशोधर, यशःकीर्ति, और वीरसेन आदि उल्लेखनीय विद्वान् हो गये हैं। आपने संस्कृत में सप्तव्यसन कथा, प्रद्युम्नचरित्र और यशोधरचरित्र लिखा। आपकी मरुगुर्जर भाषा में छह कृतियों का विवरण उपलब्ध है। उनके नाम है-गूर्वावली, यशोधररास, ऋषभनाथ की धूलि, मल्लिगीत, आदिनाथ विनती और त्रेपनक्रियागीत।
गुर्वावली-ऐतिहासिक रचना है जिसमें काष्टासंघ के पूर्वाचार्यों का संक्षिप्त विवरण दिया गया है। यह संस्कृत और मरुगुर्जर दोनों भाषाओं में लिखी गई है और गद्य तथा पद्य विधाओं का प्रयोग किया गया है । इसकी भाषा का नमूना देखिये :---
'काम कोह मद मोह, लोह आंवतु टालि, कट्ठसंघ मुनिराउ, इणी परि अजूयालि । श्री लक्ष्मसेन पट्टोधरण पावपंक छिपी नहीं,
जो नरह नरिंदे वंदीइ, श्री भीमसेन मुनिवर सही । इसका रचनाकाल इस प्रकार लिखा है :
'परनहसि अठार मास अषाढह जाणु,
अक्कवार पंचमी बहुल परव्यह बखाणु । यशोधररास-यशोधर का चरित्र आचार्य जी को इतना प्रिय था कि इसे आपने संस्कृत और मरुगुर्जर दोनों भाषाओं में लिखा। यह एक प्रबन्ध काव्य है । संस्कृत में यह रास सं० १५३६ में लिखा गया । मरुगुर्जर में यह रास उसके बाद ही लिखा गया होगा। इनमें राजा यशोधर के जीवन का वर्णन १० ढालों में विभक्त करके वर्णित किया गया है। यह अहिंसा सिद्धान्त के प्रतिपादनार्थ लिखा गया रास है। रास के वर्णन प्रभावशाली है यथा१. कासलीवाल-राजस्थान के जैन सन्त, पृ० ३९-४९ २. वही, पृ० ४४
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