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________________ मरु-गुर्जर जैन साहित्य ५२३ अह धवल गाइ जिन अराहइ जेह नरनारी सदा, ते मुगति जाइ सुखीय थाई बोलइ सेवक इम सदा।' सीमंधरस्वामीशोभातरंग में उनकी शोभा का वर्णन करता हुआ कवि लिखता है 'सुखकंदा कनक केतकी कांति कदली कोमला, मनुषो अवतार मानू पवित्र कारणि भूतला, अष्टकर्म निर्मुक्ति सिद्धा आइरिया जगि सोहीइ, आठ गणि संवदा जुत्ता आचार श्रुततनु मोहीइ ।' 'नेमिनाथचन्द्राउला'–२६ कड़ी की इस लघुकृति में नेमिनाथ का सरस एवं पवित्र चरित्र चित्रित है यथा 'दोइ करजडी वीनवू रे स्वामी श्री जिनरायो, नेमिकुमर गुण गाइवा रे, हीयइ हर्ष न मायो। हीयडि हर्ष न माइ रे सांमी नेमि जिणेष शिव गइ-गांमी, भाग्य जोगि तुम्ह सेवा पामी, तु प्रणम् हुं निज सिरनामी। इसकी अन्तिम चार पंक्तियाँ इस प्रकार हैं : 'संयम पाली रायमइ रे शिवपुर आगलिधायो, बहू जण तारी जिणवरु रे पूठिई शिवपुरि जायो, पूठिइजिननी सार करेयो, सेवक-जननई साथिइ लेयो, कहइ सेवक स्वामी अवधारु दयाकरी सेवक निइ तारो।' इस कवि के भावों में गहराई, तल्लीनता और रमणीयता तथा भाषा लालित्य के कारण यत्र-तत्र उच्चकोटि की कविता के दर्शन होते हैं। कवि ने जैनधर्म के प्रधान चरित्रों का आदर्श संयम, सिद्धान्त एवं उनकी त्यागतपस्या का उदाहरण देकर पाठकों को जीवन का उच्चादर्श काव्य की रमणीयता के साथ समझाया है। आचार्य सोमकोति--आप काष्ठासंघ के नन्दीतट शाखा के प्रसिद्ध भट्टारक लक्ष्मीसेन के प्रशिष्य एवं भीमसेन के शिष्य थे। पट्टावलियों में आपको काष्ठासंघ का ८७वां भट्टारक बताया गया है। आपके गृहस्थ जीवन के १. देसाई - जै० गु० क०-भाग ३, पृ० ५८२ २. वही ३. वही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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