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________________ मरु-गुर्जर की निरुक्ति सुन्दरकाण्ड और उत्तरकाण्ड के कारण कुछ लोग महाकवि स्वयंभू का प्रभाव रामचरितमानस पर देखते हैं किन्तु तुलसीदास के मानस में सात सोपान ही हैं काण्डों का उल्लेख नहीं मिलता। यह रचना भी दोहे-चौपाइयों में लिखी है। इसकी कुछ चौपाइयों की तुलना भी महापंडित राहुल ने मानस की चौपाइयों से की है और मानस पर पउमचरिउ का प्रभाव दिखाने का प्रयास किया है जैसे : 'वडमाण-मुह-कूहर विविग्गय, राम कहाणय एह कमनिय । अक्खर वास जलोह-मणोहर, सुयलंकार-छंद-मच्छोदर ।' इसे तुलसीदास की इन पंक्तियों से मिलाया जा सकता है _ 'आखर अरथ अलंकति नाना, छंद प्रबन्ध अनेक विधाना', आदि । हो सकता है कि यह तुलसीदास के 'क्वचिदन्यतोपि' में समाविष्ट हो। डा० हरिवल्लभ चूनीलाल भयाणी द्वारा सम्पादित सिंघी जैन शास्त्र शिक्षापीठ, भारतीय विद्याभवन, बम्बई से यह रचना तीन भागों में प्रकाशित हो चुकी है । इसमें स्वयंभू ने रामकथा का रूपक नदी से बांधा है और राम कहाणइ एह कमांगय' कहा है । उन्होंने अपनी भाषा को देशीभाषा कहा है। वे लिखते हैं 'दीह समास पवाहा वंकिय सक्कय पादप पुलिणालंकिय । देशीभाषा उभय तडुज्जल कवि दुक्खर घण सद्दसिलायल।' इत्यादि इसमें सज्जनों से विनय करते हए कवि ने अपनी अल्पज्ञता का बखान किया है। कवि ने खलों की भी अभ्यर्थना की है। तलसी के मानस में रामकथा का सरोवर से रूपक, उनका विनय प्रदर्शन, सज्जनों और दुर्जनों की वन्दना आदि प्रसंग इससे काफी मेल खाते हैं जिसके आधार पर राहुल जी ने इसका प्रभाव 'मानस' पर स्वीकार किया है। पहले के कवियों का परवर्ती काव्य पर प्रभाव कोई आश्चर्य की बात नहीं है। अपभ्रंश के प्रसिद्ध कवि नयनंदि कत 'सुदर्शनचरित' और लाख कत 'जिनदत्तचरिउ' आचार्य केशवदास की विविध छंदों और नाना अलंकारों से अलंकत 'रामचन्द्रिका' का मार्गदर्शक हो सकती हैं। जिनदत्तचरिउ में भी पचासों प्रकार के छंदों का प्रयोग किया गया है । १. देखिये, महापण्डित राहुल सांकृत्यायन-हिन्दी काव्यधारा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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