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________________ ३८ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास स्वयंभू ने चार विद्याओं, सन्धिविग्रह, अठारह तीर्थादि का संस्कृत बहुल भाषा में वर्णन किया है। स्थान-स्थान पर इसमें संस्कृत पद्यों का प्रयोग भी मानस के संस्कृत पद्यों की तरह किया गया है। इसका एक उदाहरण द्रष्टव्य है 'लीलोद्ध तैलताग्रेनिज युवति करैः सेव्यमाना यथेष्टं, यावन्नो कुंभि कुंभ स्थल दलन पटुः केसरी संप्रयाति ।' इनके दूसरे ग्रन्थ रिट्ठणेमिचरिउ' या हरिवंशपुराण में यादव, कुरु युद्ध और उत्तर नामक चार कांड हैं। इसका आधार महाभारत और हरिवंशपुराण हैं किन्तु जैनधर्म के अहिंसा सिद्धांत की रक्षा के लिए कुछ परिवर्तन किया गया है जैसे द्रौपदी स्वयंबर में मत्स्यवेध के स्थान पर धनुष चढ़ाने की प्रतिज्ञा का ही उल्लेख मिलता है। स्वयंभू संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश भाषाओं तथा काव्यशास्त्र और जैन सिद्धान्तों के धुरन्धर ज्ञाता प्रतीत होते हैं । काव्यत्व की दृष्टि से भी उनकी कृति 'पउमचरिउ' निस्सन्देह एक महान् काव्यकृति है। धर्म और साहित्य का इतना सुन्दर संगम वस्तुतः हिन्दी के महाकवि तुलसी में ही शताब्दियों के बाद फिर देखने को मिलता है। __ पुष्पदन्त (१०वीं शताब्दी)-अपभ्रंश के दूसरे महाकवि पुष्पदन्त काश्यप गोत्रोत्पन्न ब्राह्मण थे। इनके पिता का नाम केशव भट्ट और माता का नाम मुग्धा देवी था। पहले ये शैव थे पीछे जैन हो गये । आप मान्यखेट के राष्ट्रकूट नरेश कृष्णराज के मंत्री भरत के आश्रित थे। मान्यखेट में ही आपने भरत के पुत्र नन्न के आग्रह पर महापुराण, णायकुमारचरिउ और जसहरचरिउ नामक काव्य ग्रन्थ लिखे । ये शरीर से निर्बल और निर्धन थे पर बड़े प्रतिभाशाली थे और अपनी काव्यशक्ति पर इन्हें बड़ा स्वाभिमान था। महापुराण के दो भाग हैं -आदिपुराण और उत्तरपुराण । इसके विशाल कथानक में अनेक अलौकिक चमत्कारपूर्ण घटनाओं को कौशलपूर्वक गूंथा गया है, बीच-बीच में अनेक सरस एवं काव्यमय स्थल हैं। शृगार, वीर और शान्त रसों की बड़ी उत्तम व्यञ्जना की गयी है। आप शास्त्रीय रीति से आचार्य की भांति सुलोचना के नखशिख का वर्णन करते हुए लिखते हैं१. देखिये, डॉ० रामसिंह तोमर-"प्राकत-अपभ्रंश साहित्य और इसका हिन्दी साहित्य पर प्रभाव ।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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