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________________ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास और हरिवंशपुराण में महाभारत की कथा को आधार बनाया गया है किन्तु इन प्रसिद्ध उपजीव्य ग्रंथों की कथा को जैनमतानुकल बनाकर प्रस्तुत किया गया है। राम, लक्ष्मण और रावण आदि को जैनधर्मावलम्बी बनाकर उनकी गणना शलाकापुरुषों में की गई है। महापुराण में तिरसठ महापुरुषों की कथा होने से उन्हें महापुराण की संज्ञा दी गई है । स्वयंभू का पउमचरिउ, पुष्पदंत का महापुराण, यशःकीर्ति का पाण्डव-पुराण और रइधू का हरिवंशपुराण आदि इस प्रकार की प्रसिद्ध रचनायें हैं। पुराण शब्द प्राचीन कथा का सूचक है। इसमें एक ही महापुरुष का जीवन वणित होता है। इन पुराणों की परम्परा विक्रम की तीसरी शताब्दी में रचित विमलसूरि के 'पउमचरिय' से प्रारम्भ होता है। यह प्राकृत की रचना है। इसके आधार पर अपभ्रंश में स्वयंभू कृत 'पउमचरिअ' ऐसी रचनाओं में अग्रगण्य है। इसके पश्चात् पुष्पदन्त ने भी महापुराण लिखा किन्तु उन्होंने गुणभद्राचार्य के उत्तरपुराण की परम्परा का अनुगमन किया। स्वयंभू (वि० ९वीं शताब्दी ) अपभ्रंश के निर्विवाद सर्वप्रथम महाकवि हैं । वे कोसलवासी थे किन्तु राष्ट्रकूट राजा ध्रुव के मंत्री रयडा धनंजय द्वारा मान्यखेट ले जाये गये थे। इनके माता-पिता का नाम पद्मिनी और मारुत था । अमृताम्बा और आदित्याम्बा नामक इनकी दो पत्नियां थीं और इनके पुत्र का नाम त्रिभुवन था जिसने अपने पिता की अपूर्ण कृतियों को पूरा किया था। पउमचरिउ, रिट्ठणेमिचरिउ (हरिवंशपुराण) स्वयंभू छंद इनकी प्रख्यात कृतियां हैं। पंचमीचरिउ, और सुद्धय चरिउ नामक ग्रन्थ भी इनके लिखे कहे जाते हैं। महापंडित राहुल इन्हें हिन्दी का प्रथम श्रेष्ठ महाकवि मानते हैं। 'पउमचरिउ' में पांच काण्ड हैं। महापंडित राहुल जी तुलसीदास को स्वयंभू से प्रभावित बताते हैं। जो हो पउमचरिउ एक उत्तम प्रबन्ध काव्य है जिसमें प्रबन्धकाव्य के सभी लक्षणों का कुशलतापूर्वक निर्वाह किया गया है। इसके पांच काण्डों का नाम है : (१) विद्याधरकाण्ड, (२) अयोध्याकाण्ड, (३) सुन्दरकाण्ड, (४) युद्धकाण्ड, (५) उत्तरकाण्ड । १. त्रिषष्टि शलाका पुरुषों में २४ तीर्थंकरों, १२ चक्रवतियों, ९ वासुदेवों, ९ प्रति वासुदेवों और ९ बलदेवों की गणना होती है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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