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________________ मरु-गुर्जर जैन साहित्य ५२१ इसका अन्तिम छन्द इस प्रकार है : 'अभिनव गुरु गोयम अहबक सोहम सिरि सोमसुन्दर जगुपवर । गुरु सिरि मुनिसुन्दरसूरि पुरंदर श्री जयचन्द्र मुनिन्द्र गुरु । सिरि जिनकीरति च्यारिइ गणधर तास सीस इम भणइ अ, जो भवीअ भणोसइ भाव सुणेसइ चिन्तामणिं करिताह तणइ ओ ।३४11 सूरहंस-आप तपागच्छीय हेमविमलसूरि-धनदेव के शिष्य थे । 'मत्स्योदरनरेन्द्रचौपइ' सं० १५७४ का कर्ता आपको बताया गया है। इसके रचयिता का प्रश्न भी विवादास्पद है। श्री देसाई ने सूरहंस के शिष्य लावण्यरत्न की रचनाओं के साथ भी इस रास को गिनाया हैं और वही रचनाकाल भी बताया गया है। हो सकता है कि इसके लेखक लावण्यरत्नाही हों । इसकी कुछ पंक्तियाँ देखिये: 'श्री तपारत्नशेखर सूरि, जिणि पडिवोध्या सावक सहस, संवत पनर चिहुत्तरि वरिस, देवगिरि नगर कीधउरास ।'3 इससे पता चलता है यह देवगिरि में लिखा गया। लेकिन रचयिता का नाम स्पष्ट नही है। . सेवक-आप तपागच्छीय लक्ष्मीसागरसूरि के भक्त थे। आपने सं० १५२५ के लगभग 'शालिभद्रफागु' गाथा ७२ लिखा। इसकी भाषा के नमूने के लिए इसके प्रथम दो छंद देखिये : 'गोयम गणनिधि गण निलु, लवधि तणुभण्डार, नामि नवनिधि पामीइ, वंछित फल दातार। सरसति सामिनि पाए नमू, मांगू अविरल वाणि, सालिभद्र गुण वर्णवु ले चडयो सुप्रमाण । इस रचना के अन्त में कवि ने कुछ प्रतिष्ठा आदि का समय बताया है यथा: 'सालिभद्र वीजउ सुणु, सुद्र सतन गदराज, गूजरन्याति कुलतिलु कीधां उत्तमकाज । १. श्री मो० द० देसाई-जै० गु० क० भाग ३, खंड २ १० १४९० २. वही, भाग १, पृ० १३२ ।। ३. वही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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