________________
५२०
मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास सुन्दरराज'- आपने सं० १५५३ में 'गजसिंहकुमारचौपई' लिखी। इस रचना और इसके रचनाकार के सम्बन्ध में विशेष विवरण उपलब्ध नहीं है।
मुनिसुन्दरसूरि-ये तपागच्छीय साधु थे। इन्होंने सं० १५०१ में 'सुदर्शनश्रेष्ठिरास' की रचना की। डॉ० कस्तूरचन्द कासलीवाल के अनुसार मुनिसुन्दरसूरि की इस रचना के अलावा १८ रचनायें प्राप्त हो चुकी हैं जिनमें रोहिणीयप्रबन्धरास, जंबूस्वासीचौपइ, व्रजस्वामीचौपइ, अभयकुमारश्रेणिकरास आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। श्री अगरचन्द. नाहटा सुदर्शनश्रेष्ठिरास का कर्ता मुनिसुन्दरसूरि के स्थान पर चन्दप्रभसूरि को बताते हैं। श्री मो० द० देसाई इसका लेखक मुनिसुन्दरसूरि के शिष्य संधविमल या शुभशील को मानते हैं। सुदर्शनश्रेष्ठिरास का विवरण पहले दिया जा चुका है। श्री देसाई मुनिसून्दरसूरि को 'शांतरास' का लेखक बताते हैं किन्तु इसके रचनाकाल के सम्बन्ध मे निश्चित नहीं हैं । वे इसे सं० १४५५ की रचना बताते हैं। इस प्रकार उनके विचार से मुनिसुन्दरसूरि १५वीं शताब्दी के कवि हैं जबकि डॉ० कासलीवाल इन्हें १६वीं शताब्दी के प्रथम दशक का कवि स्वीकार करते हैं। डॉ० कासली. वाल और श्री देसाई ने इनकी जिन रचनाओं का उल्लेख किया है उनका विवरण उद्धरण नही दिया है। अतः इस सम्बन्ध में शोध की अपेक्षा है।
मुनिसुन्दरसुरि आदि शिष्य - 'नेमिचरित-नेमि स्तव०' नामक रचना का कर्ता मुनिसुन्दरसूरि का आदि शिष्य कौन है संधविमल, शुभशील या चन्द्रप्रभ-यह कुछ पता नही चल पाया है। इस रचना के रचनाकाल का भी पता नहीं है। यह सब शोध का विषय है। इसका प्रथम छंद निम्नांकित है :
'जय जय नेमि जिणंद, समुद्र विजय राय कुलतिलो ओ, तिहुअण नयनाणंद, मुख जिम पूनिम-चन्दलो , गोयम गुरु पणमेवि, सरसति सामिणि मनधरि ओ,
पभणसु हूँ संखेवि, नेमितणा नव भव चरीइं। १. देसाई-जै० ग• क०-भाग १, पृ० ९५ २. क० च० कासलीवाल-राजस्थान के जैन सन्त-गृ० २११-२१२ - ३. देसाई-जै• गु० क०-भाग ३, पृ० ४२२ ४. वही, खंड २ पृ० १४६०
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org