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मरु-गुर्जर जैन साहित्य
५१९ सिंहदत्तसूरि-आप आगमगच्छीय विद्वान् थे। आपने सं० १५८२ से पूर्व 'शालिभद्ररास' की रचना की। आपके शिष्य सोमदेवसूरि ने 'सम्यकत्व कौमुदी' लिखी। इस रचना की हस्तलिखित प्रति जिनसागर शाखा भण्डार, बीकानेर में सुरक्षित है। __ सोहा-इनकी प्रथम रचना जंबूस्वामीबेलि ( १८ कड़ी) सं० १५३५ वैशाख शु० ६ को लिखी गई। दसरी उपलब्ध रचना है 'रहनेमिवेलि' (१६ कड़ी) जो सं० १५३५ में लिखी गई। ये दोनों रचनायें जैनयुग के पु० ५ पृ० ४७३ से ४७७ तक छपी हैं। इनकी प्रथम रचना का प्रथम छन्द इस प्रकार है
'समुद्र श्री प्रियपति भणइं, हंउ जल तुं रतुसारलि, बग करि सुगज कंगु वण, फलिया मन उनमूलि । गडमण्डकइ सगध बहु चूकिसि, काम भोग सुख मूलि नाह
न भूलीयइ ।' इसमें रचना या रचनाकार का विवरण नही है। अन्तिम पंक्ति देखिये
'नवाणवइ कोडि कनक तजी, जंबुकुमरु आठ नारि, . वीर जिणंद मुद्रा लइ, विरतउ इणि संसारि ।
अनुदिन चतुविधि सयल संघ मुनि, अणुदिणु सीहा स्वामी।' इनकी दूसरी रचना नेमि-राजुल की सरस कथा पर आधारित है। इसका प्रथम और अन्तिम छन्द दिया जा रहा है। प्रथम :-प्रिय वन्दण परबति चडी, वरिसइ गहिर गम्भीर,
भीनउ कंबल कंचउ, मुख गोमटु सरीर । देखी गज गामिनी गयवर गहिगहिउ,
जिम कमलिणि मधुकारवेली पराली।'3 अन्त- 'संधदास सीहुभणइ, भविभवि नमि पायचल,
रहनेमि राजलि चरित सुणि, पाप पणासइ दूरि,
प्रसन्न चतुर्विध संधसयल मुनि अनुदिन सीहा या सामि ।१६।' इनकी भाषा पर प्राचीन काव्य भाषा-शैली का प्रभाव है। १. श्री मो० देसाई-जै० गु० क०-भाग ३, खंड २ पृ० १४९४ २. वही, भाग ३, पृ० ४९१-४१२ ३. वही
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