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________________ ५१६ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास इसमें कयवन्नाचरित्र के माध्यम से दान का माहात्म्य समझाया गया है । इसकी अन्तिम पंक्तियां इस प्रकार हैं : 'साधु रतन सूरि इम भणइ, कयवन्नानु चरित्र जे सूणई, भणइ भणावर जे बलि गणइं, चउदरयण नवनिधि आगंणइ ।' सालिग - आपने जीवदया के ऊपर 'बलभद्रबेलि' (२८ गाथा) लिखी है । इस बेलि में जीवदया और सम्यक्त्व पर प्रकाश डाला गया है । इसकी प्रारम्भिक पक्तियाँ इस प्रकार हैं : --- 'द्वारिका नयरी नीकल्या, बे वंधव इक ठाय, त्रिषा ऊपनी कृष्णनइ, बंधव पाणी पाय । बंधव जाइ लाव्युनीर, ऊवीसम साहस धीर, पउढयउ छइ वृखतली छाया, कुमलांणी कोमलकाया । ' कृष्ण और बलभद्र द्वारका भस्म होने पर वहां से चलकर वन में पहुँचे, कृष्ण को प्यास लगी, वही से वेलि प्रारम्भ हुई है । इसका अन्त इन पंक्तियों से हुआ है 'इम जीव दया प्रतिपालउ, साचउ समकित रयण उजालउ, समकित विण काज न सीझइ, सालिग कहइ सुधर कीजइ । " कृष्ण के जीवन के करुण प्रसंग पर आधारित यह रचना भावना युक्त है और भाषा भी भावाभिव्यक्ति के लिए उपयुक्त एवं सक्षम है । सिद्धर (श्रीधर ) - ( मोढ अडालज वणिक मंत्रि सहसा सुत ) आपने सं० १५५५ में जूनागढ़ में 'रावण मंदोदरीसंवाद' की रचना की । इस कवि को भी देसाई ने जैनेतर बताया है क्योंकि प्रारम्भ में कवि ने जिन भगवान का स्मरण नहीं किया है, यथा 'गाउस गोर सुगुरु रघुपति रमा, वारस धूय अनइ ब्रह्माण, ताइं शिरोमणि सवि सकति, सिद्धर देउ वाघगाणि । इसका रचनाकाल इस प्रकार बताया गया है 'संवत पर प्रपा शुधि ? ( पासठइ) जीर्ण दुर्ग निरवास, पूरण ग्यारह चोपइ, बे सई बुद्धि प्रकाश । प्रकाशइं पातिक हणइं, गाईं जे नरनारि, रामकथा श्रवणे सुइं अवतरिनहि आवार ।"" १. नाहटा - जै० म० गु० क० भाग १, पृ० १३४, १३५ २. देसाई - जै० गु० क० - भाग ३, खंड २ पृ० २११८-२१२० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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