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________________ ਪੈ मरु गुर्जर जैन साहित्य ५१३ साची शासन देवि प्रसन्न, सहिजसुन्दर बेलि सुवचन्न, पामी सद्गुरु तणी आसीस, रुषिराज नमूं नसदीस ।' इरियावहीरास (७५ कड़ी) इसमें कवि गौतम गणधर की वंदना करके नवतत्त्व, बारह व्रत, बत्रीस अनंतकाय आदि की चर्चा करता है। इसका प्रथम छंद देखिये : 'वर राजगृही जाणीइ, समोसर्या तिहिं वीर, पहिलं गणधर गुणनिलउ, गाजइ गुहिर गंभीर ।' 'जे पडिकमसइ इरीयावही, शिवरमणी ते वरसइ सही, पुहवि परगट ते गहगहइ, सहजिसुन्दर पाठक इम कही। लघुअंतरंगरास का रचनाकाल, स्थान तथा अन्य विवरण नहीं दिया गया है। इसी प्रकार अन्य कई छोटी कृतियां हैं जैसे जइतवेलि ३४ गाथा, सरस्वतीछंद, सालिभद्रसंज्झाय, आदिनाथशजयस्तव, आंखकान-संवाद और यौवन-जरासंवाद। पिछली दोनों रचनायें संवाद शैली में होने के कारण पाठकों को विशेष रूप से आकृष्ट करती हैं अतः उनका नमूना नीचे दिया जा रहा है । यौवन-जरासंवाद का आदि पद्य देखिये : अमर कुमर भुज सबल विमल कुल कित्ति विलक्षण, धीर वीर गंभीर सधर गुणवंत विचक्षण । श्री सारद मुख कमलि रमलि जिमकरइ सुहंसी, दानवंत गुणवंत धर्म धनवंत सुवंशी । उल्लसित हसित लीला ललित, कला ललित यौवन सहित, श्री भोजराज भोगिक भमर करइ रज्जदूषण रहित ।' इसकी भाषा में सानुप्रासिकता, प्रवाह, लयमयता तथा गेयता द्रष्टव्य है । भाषा संस्कृत गर्भित तत्सम प्रधान मरुगुर्जर है। इसी प्रकार आंख-कानसंवाद का अन्तिम छंद देखिये : 'जिन जेइवा अति आंखि हरखई रूप निरखइं वली वली, संगीत गीत रसाल नवनव सुणइं कान वली वली। विसरी बात विवादनी परि भाव भगति करई घणी, करकमल जोडी सहज सुन्दर भणई वाणि सोहामणी ।'' १. श्री देसाई-जै० गु० क०-भाग ३, ५० ५६२ २. वही, भाग , खंड २ पृ० १९९२-१४९३ ३. वहीं, भाग १, पृ० १२९ ४. वही, भाग ३, पृ० ५६२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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