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मरु-गुर्जर जैन साहित्य अलावा दानछन्द, अष्टाह्निकागीत, क्षेत्रपालगीत एवं अन्य स्फुट गीत, पद आदि उपलब्ध हैं जिनके आधार पर इन्हें मरुगुर्जर का उत्तम कवि निस्संदेह स्वीकार किया जायेगा। __ शुभशीलगणि-आप तपागच्छीय मुनिसुन्दर सूरि के शिष्य थे। आपने सं० १५०९ में 'प्रसेनजितरास' की रचना की। श्री देसाई ने सं० १५०१ में लिखित, 'सुदर्शनश्रेष्ठिरास' का भी इन्हें लेखक बताया है। किन्तु प्रश्नवाचक चिह्न लगा दिया है। भाग १ पृ० ४२-४३ पर तो उन्होंने इसका कर्ता संघविमल को बताया था किन्तु भाग ३ में सुधार कर शुभशील को बताया है । अतः सुदर्शनश्रेष्ठिरास का विवरण भी इन्हीं के साथ दिया जा रहा है।
'प्रसेनजितरास' का केवल नामोल्लेख ही श्री देसाई और श्री नाहटा ने किया है, इसका विवरण, उद्धरण नहीं दिया है। श्री नाहटाने सुदर्शनश्रेष्ठि रास के सम्बन्ध में लिखा है कि इसकी कई प्रतियों में चन्द्रप्रभसूरि पाठ मिलता है और उनके नामके साथ सुदर्शनश्रेष्ठिरास का विवरण दिया जा चुका है। किसी-किसी प्रति में इसका लेखक 'मेलासंघवी' कहा गया है । श्री देसाई जी दस प्रतियों का मिलान करने के बावजूद भी किसी एक को कर्त्ता नहीं निश्चित कर पाये हैं किन्तु श्री नाहटा जी ने चन्द्रप्रभसूरि को कर्ता कहा है अतः इस रास का विवरण वहीं दे दिया गया। यह रचना 'संवत पनर एकातरइ' अर्थात् सं० १५०१ की है और लेखक मुनिसुन्दर सूरि का शिष्य है किन्तु कौन लेखक है यह निश्चित नहीं है। रचना निर्विवाद है, और अच्छी रचना है अतः लेखक का प्रश्न विचारणीय है। शुभशीलगणि 'प्रसेनजितरास' के निर्विवाद लेखक हैं पर उस रचना का विवरण उपलब्ध नहीं है।
शुभवर्धन शिष्य -(सुधर्मरुचि ?) आपने सं० १५६३ में शान्तिनाथस्तवन (३१ कड़ी) लिखी। इसमें रचनाकाल बताया गया है, यथा :
'पनर त्रेसठइ तूहिज तवै, दसमी दिन भाद्रवामासे,
तवीथउ स्वामी हरख्ये पामी, पूरै श्रेवकारो आसे।' __ आपकी दूसरी रचना 'गजसूकूमालरास' का रचना-काल सं० १५९१ से पूर्व श्री देसाई ने निश्चित किया है। इस कवि की तीसरी रचना 'आषाढ़ १. श्री देसाई-जैन गु० क० ---भाग ३, पृ० ४५५-४५६ २. वही भाग ११० ४३ और भाग १ पृ० ४३ तथा भाग ३ पृ० ५६६-५६७
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