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________________ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास श्री विजयकीर्ति यति अभिनवो, गछपति पूरब प्रकट कीमि मुक निकरो। भ० विजयकीर्ति का गुणानुवाद कवि ने एक अन्य लघु कृति 'गुरु छन्द' में भी किया है। इसी छन्द में सर्वप्रथम उन्होंने विजयकीर्ति के पिता गंगासहाय एवं माता कुवरि का नाम प्रकट किया है। इसमें कुल ११ छन्द है। नेमिनाथछंद -२५ पद्यों में निबद्ध इस छन्द में नेमिनाथ के पावन एवं मनोहर जीवन का वर्णन किया गया है। इसकी भाषा संस्कृत गर्भित है । नेमिनाथ के विवाह के समय विविध वाद्ययन्त्रों के बजने से समूचा वातावरण किस प्रकार गूजित हो रहा था, उसका वर्णन इन पंक्तियों में देखिये 'झण झणण करती टणण धरती सद्ध वोल्लइ झल्लरी, घुम घुमुक करती कण हरती एहवज्जि सुन्दरी । तण तणण टंका नाद सुन्दर तांति मन्दर वणिया, धम धमहं नादि घणण करती धुग्धरी सुहकारीया । दानछंद--इसमें कृपणता की निंदा और दान की प्रशस्ति केवल दो छंदों में की गई है। तत्त्वसार दूहा-इसमें जैनसिद्धान्तानुसार सात तत्त्वों का वर्णन किया गया है । इस सैद्धान्तिक रचना में ९१ दोहे हैं। इसकी भाषा पर गुजराती का प्रभाव अत्यधिक है। इसे कवि ने दुल्हा नामक श्रावक के अनुरोध पर लिखा था : 'रोग रहित संगति सुखीरे, संपदा पूरण ठाण, धर्म बुद्धि मन शुद्धडी, दूल्हा अनुक्रमि जाण । मोक्ष का वर्णन कवि ने इन शब्दों में किया है : 'कर्म कलंक विकरनो रे, निःशेष होयिनाश, मोक्ष तत्व श्री जिन कही, जाणवा भानु अन्यास । मरुगुर्जर की ये रचनायें भ० शुभचन्द्र की संस्कृत कृतियों के समान महत्त्वपूर्ण नहीं है किन्तु इनसे उनकी काव्य प्रतिभा का अनुमान होता है, ये रचनायें भाषा, काव्यतत्त्व एवं वर्णन शैली की दृष्टि से उत्तम हैं। इनके १. डा० क० च० कासलीवाल -रा० के जै० सं० पृ० १०२ २. वही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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