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________________ मरु-गुर्जर जैन साहित्य ५०३ चित्तनिरोधक कथा-१५ पद्यों की छोटी रचना है, जिसमें चित्त को वश में रखने का उपदेश दिया गया है। 'बाहुबलि बेलि' में बाहुबलि का संक्षिप्त जीवन चरित्र विविध छन्दों विशेषतया त्रोटक एवं रागसिन्धु में वर्णित है। नेमिकुमार रास-नेमि की वैवाहिक घटना पर आधारित कवि की यह दूसरी कृति है जो सं० १६७३ की रचना है। इस कृति में रचना काल दिया गया है, यथा : 'संवत सोल ताहोत्तरि श्रावण सुदि गुरुवार । दशमी को दिन रूयडो, रास रच्यो मनोहार । इस आधार पर ये १७वीं शती के कवि हो सकते हैं किन्तु डॉ. कासलीवाल ने इन्हें १६वीं शती का कवि कहा है। यद्यपि उन्होंने अपनी इस मान्यता का कोई ठोस आधार नहीं बताया है अतः ये १६वीं और १७वीं शताब्दी की संधि बेला के कवि हो सकते हैं। अपनी इन कृतियों के आधार पर ये मरुगुर्जर साहित्य के श्रेष्ठ कवि सिद्ध होते हैं किन्तु इनका रचनाकाल अनिश्चित है। शांतिसूरि-आप सांडेरगच्छीय आमदेवसूरि के शिष्य थे । आपकी रचना 'सागरदत्तरास' सं० १५१७ से १५१९ के बीच किसी समय लिखी गई है। यह प्राकृत, अपभ्रंश और मरुगुर्जर की मिली जुली भाषा-शैली में लिखित १३७ पद्यों की एक रसमय काव्यकृति है। इसमें रासउ, कुण्डलियां, धत्ता, मालिनी, रूपक, छप्पय, पद्धडी आदि विविध छन्दों का प्रयोग किया गया है । आप सं० १५९७ तक विद्यमान थे। सागरदत्त रास की कुछ पंक्तियाँ उदाहरणार्थ प्रस्तुत है : 'विमलकर कमल-परिमलमिलंत रोलबं मंगलाराव अमिय कमंडलु पाणि, पणमामि सरस्सयं दिवि । सिद्धत्यो सिद्धत्थो पसिद्ध पल्ली पुरालये वीरो, सिद्धत्थराय पुत्तो सुद्धत्थं देहु महु बयणं । सिरि आमदेव सूरिसर पय पउम जुयलवंदे, लक्ष्मी सरसइउ सुपसन्ना जस्स सेवा, छंदतर कल्लोलं, वन्नजलं संतिसूरिणा महियं, सायरचरिअं सायर सरिसं निसामेह ।'' १. देसाई-जै० गु० क०-भाग ३, पृ० ५१८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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