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________________ मह-गुर्जर जैन साहित्य कवियण नीतु मण्डली, दिउ मुझ बुद्धि विशाल । जिम विक्रम राजा तणउ कहहु प्रबन्ध विशाल । 1 इसके प्रारम्भ में गणेश वन्दना इसकी विशेषता है, यथा'गवरिनन्दन गवरि नन्दन गणपत्ति, एकदंत गजवदन पुणिविघन विसन सविदूरि टालइ ।" इसकी अन्तिम पंक्तियों में रचनाकाल दिया गया है, यथासंवत पनरह सइ त्रयासीयइ, ए चरित्र निसुणी हरसीयइ, साहसीक जे होइ निसंक, कायर कंपइ जे बलि रंक १९०॥ पंचदंड नाम सुचरित्र, देखी तेहनुं अति विचित्र । तिणि विनोद चउपइ रसाल, कोधी सुणतां सुफल विशाल । ९३ । आरामशोभाचौपाई सं० १५८३ (बीकानेर) का आदि पद्य देखिये - 'श्री जिन शासन जगि जयउ, जिणि राजा अरिहंत, दया धर्म भाव उभलउ, भयभंजण भगवंत । भावतणि जिम पामियउ, परिभव उत्तिम ठाय । सुणि आरामशोभा तणउं, प्रकट कियो निजनाम | अन्त और रचनाकाल - 'अ आराम शोभा चउपइ भावतरे ऊपरि मइ कही, बरस त्र्यासिये मागसिर मासि, नीका नयरिहि मन उल्हासि । २४८ | 2 मृगावती चौपाई सं० १६०२ बीकानेर - यह रचना मृगावती के शीलमाहात्म्य पर प्रकाश डालती है, यथा शीलि मनोरथ मनतणा, सीझइ सुणि निसि दीस, मृगावती शील छल्यौ, मालवपति अवनीश । प्रद्योत नरिदवर, सतीसिरोमणि जेणि । हार वियो हे जइकरी, कहते कारण केणि । इसके आदि में शारदा की वन्दना और बाद में गुरु परम्परा दी गई है । अन्तिमछंद 'जां लगि मेरु मही रविचन्द्र, जांलगि जलधि पुण्य पहुवंद, तां अविचल ओ चरित सुचंग, सुणतां भणतां हुइ बहुरंग । ९८ । चित्रसेनपद्मावतीरास की रचना सं० १६०४ जोधपुर में हुइ । इसका मङ्गलाचरण देखिये १. श्री अ० च० नाहटा - जै० म० गु० क०, पृ० १४८ - १४९ २. श्री देसाई —— जै० गु० क० - भाग ३, पृ० ६२५ से ६२९ - ३. वही - भाग ३, पृ ६२७ ४९९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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