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________________ ४९४ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास नमिराजर्षि संधि, पद्य ६९, बीकानेर, [१५] साधुवंदना, पद्य १०८, [१६] ब्रह्मचारी, ५५ गाथा, [१७] सीमंधरस्तव, पद्य ४१, [१८] शत्रुजयआदीश्वर स्तव पद्य २७, [१९] स्तम्भनपार्श्वनाथ स्तव पद्य १३, [२०] इलापुत्ररास ।' आगे कुछ प्रमुख रचनाओं का परिचय एवं उद्धरण प्रस्तुत किया जा रहा है । पद्मचरित्र-इसमें जैनमतानुसार सीताराम के पावन चरित्र का चित्रण किया गया है। कवि ने उपकेशगच्छीय रत्नप्रभसूरि, सिंद्धसूरि, कक्कसूरि को नंदन किया है और रचना तिथि का उल्लेख किया है, यथा 'बीकानयरइ वीर जिणचंद, तासु पसाई परमाणंदि, चउबीह संघ तणइ सुप्रसादि, सोल चिडोत्तर फागुण आदि ।' कीधी कथा सीतातणी, सीलतणी महिमा जसु धणी।' अबंडचउपइ-यह सं० १५९९ में तिमरा में लिखी गई। यह सरस कथा कवि ने मुनिरत्नसरि से सनी और उसके आधार पर अंबड के पावन चरित्र का वर्णन चउपइ बन्ध में तिमरामंडण जिन भगवान् के उपाश्रय में किया-- 'हरषसमुद्र वाचक तसुसीस, तिमरा मंडण श्री जगदीश, पास जिणंद तणइ सुपसाउ, विनयसमुद्र कह्यो मनि भाउ । रचनाकाल 'पनर निवाणू प्रवर प्रसिद्धं, अ प्रबन्ध मइ सुललित किद्ध, महा सुकिल द्वितीय रविवार, रच्यो तिमरा नयरि मझारि । पूर्णिमागच्छ के संस्थापक श्रीचन्द्रप्रभसूरि, धर्मघोषसूरि, समुद्रघोषसूरि के शिष्य मुनिरत्नसूरि ने अंबडचरित्र संस्कृत में लिखा था। उसी संस्कृत रचना के आधार पर यह चौपइ मरुगुर्जर में लिखी गई है। 'विक्रमपंचदण्डचौपई सं० १५८३ की रचना है। इसका प्रारम्भ इन पंक्तियों से हुआ है 'देवि सरसति देविसर सति प्रथम प्रणमेवि, वीणा पुस्तक धारिणी वंड विहंसि सुप्रसंसि चुल्लइ, कासमीरपुरवासिणि, देइनांण अनांण-पिल्लइ । १. श्री अ० च० नाहटा-परम्परा पृ० ६६-६७ २. श्री देसाई-जै० गु० क०-भाग १, पृ० १६८-१७० ३. श्री मो० द० देसाई-जे० गु० क०-भाग १ पृ० १६९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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