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३२ मरु-गुर्जर जैन साहित्य
४९७ विनयरतन-आप बडगच्छीय मुनिदेवसूरि वाचक महीरतन मुनिसार के शिष्य थे। आपने सं० १५४९ में सुभद्राचउपइ (१५३ पद्य) लिखा। इसके रचना काल की सूचना आपने इस प्रकार दी है
संवत पनर गुणचासइ चरी, भाद्र बडइ मति उपनी खरी। इसके प्रारम्भ में सुभद्रा के शील वर्णन की प्रस्तावना है, यथा
'कमलवदनि सुभद्रा तणउ, सीलइ सोहगरूप,
अविचल सीलइ जीवसुख, शीलइमानइ भूप।" कवि ने गुरु परम्परा के सम्बन्ध में बड़गच्छ के देवसूरि, मुनीश्वरसूरि, मेरुप्रभ, राजरतन, मुनिदेवसरि और महीरतन का उल्लेख किया। इसका अन्तिम छंद इस प्रकार है
'शास्त्र मांहि मइ दीठी जिसी, चउपइ बंधए आणी तिसी
भणइ भणावइ निसुणइ जेह, वरकाणाधिप तूसइ देव ।५३॥' इसकी भाषा बोलचाल की स्वाभाविक मरुगुर्जर है । इसकी प्रति अभय जैन ग्रन्थालय में उपलब्ध है।
वाचक विनयसमुद्र-१६ वीं शताब्दी के श्वेताम्बर महाकवियों में आप प्रायः अन्तिम श्रेष्ठ रचनाकार हैं। आप उपकेशगच्छ के वाचक हर्षसमुद्र के शिष्य थे। आपका कार्यक्षेत्र अधिकतर राजस्थान था। आपका रचना काल सं० १५८३ से १६१४ तक स्वीकृत है। इस अवधि में आपने करीब २५ रचनायें कीं, जिनमें से २० रचनाओं का विवरण श्री अ० च० नाहटा ने राजस्थानभारती भाग-५, अंक १ में 'वाचक विनयसमुद्र' शीर्षक के अन्तर्गत प्रस्तुत किया है। इनके प्रमुख रचनाओं की सूची यहाँ दी जाए रही है- [१] विक्रमपंचदण्ड चौ०, पद्य ५९३, सं० १५८३, [२] आरामशोभा चौ०, पद्य २४८, सं० १५८३, [३] अम्बड़ चौ०, सं० १५९९ तिवरी, [४] मृगावती चौ०, सं० १६०२, बीकानेर, [५] चित्रसेनपद्मावतीरास पद्य २४७ सं० १६०४ जोधपुर, [६] पद्मपरित्र ( रामायण ) सं० १६०४ बीकानेर, [७, शीलरास, पद्य ४४ सं० १६०४, [८] रोहिणीरास सं० १६०५, [९] सिंहासनबत्तीसी चौ० सं० १६११ बीकानेर, [१०] पार्श्वनाथस्तवन, ३९ पद्य, [११] नलदमयन्तीरास, पद्य ३०५ सं० १६१४, [१२] संग्रामसूरि चौ०-बीकानेर, [१३] चन्दनबालारास, [१४] १. श्री अ० च० नाहटा-जै० म० गु० क० १० १३६ २. श्री अ० च० नाहटा-जे० म० गु० क० पृ० १३७
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