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मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
यह काव्य विधा की नवीनता, भाषा की सुन्दरता और विषय प्रतिपादन की गम्भीरता की दृष्टि से उल्लेखनीय है । __ आनन्दविमलसूरिरास (प्रका०-ऐतिहासिक रास संग्रह) से सूरिजी के संबंध में निम्नांकित महत्वपूर्ण सूचनायें प्राप्त होती हैं । आनन्दविमलसूरि हेम विमलसूरि के पट्टधरथे। इनके पिता का नाम मेघजीशाह औरमाता का नाम मणिक्य दे था। आपका परिवार ईडर नगर में रहता था। ये लोग ओसवाल वणिक थे । आपके बचपन का नाम बाधजी था। आपका जन्म सं० १५४७ में हुआ। आपकी दीक्षा हेमविमलसूरि द्वारा सं० १५५२ में तथा सुरि पद सं० १५७० में सम्पन्न हुआ। आपने खूब विहार किया; यात्राओं का नेतृत्व किया और अपने प्रवचनों द्वारा जैनधर्म की प्रभावना की। सं० १५९७ में आपका स्वर्गवास हुआ। यह रास उसी वर्ष लिखा गया। इसमें कुछ १५३ छन्द हैं।
विजयसिंह-कवि विजयसिंह ने सं० १५०५ में 'अजियपुराण' (अजित पुराण) नामक काव्य की रचना की। इसमें दूसरे तीर्थकर अजितनाथ का चरित्र चित्रित है । कवि ने इसे महापुराण बताया है किन्तु वस्तुतः यह एक चरित काव्य है । इसकी भाषा अपभ्रंश गभित है अतः इसे मरुगुर्जर की रचना मानने में कठिनाई है। इसलिए इसके विस्तृत विवरण और उद्धरण आदि नहीं दिए जा रहे हैं। __ भट्टारक विजय कीति-आपने स्वयं मरुगुर्जर में रचना नहीं की किन्तु आपने साहित्य सृजन की प्रेरणा देकर साहित्य को सुरक्षित रखने की सुव्यवस्था करके और स्वयम् साहित्य का आलम्बन बनकर परोक्षरूप से साहित्य की स्मरणीय सेवा की है। शुभचन्द्र, यशोधर, ब्रह्म बूचराज जैसे समर्थ कवियों ने आपकी प्रशस्ति की और आपकी स्तुति में कवितायें लिखीं जैसे भ० शुभचन्द्र कृत 'श्रीविजयकीति छन्द', ब्र० वूचराज कृत गीत आदि । कामराज, देवेन्द्रकीर्ति, लक्ष्मीचन्द, यशोधर आदि ने अपनी कृतियों में इनकी प्रशस्ति की है।
विजयगणि-श्री देसाई ने सं० १५९२ में रचित 'आराधनारास' का कर्ता इन्हें बताया था, किन्तु जै० गु० क०, भाग ३, पृ० ६२१ में उसे अशुद्ध बताकर लिखा कि वस्तुतः यह रचना पार्श्वचन्द्रसूरिकृत है । अतः इस रचना १. हि० सा० का बृ० इ०-भाग ३, पृ० २६६
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