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________________ ४४३ मरु-गुर्जर जैन माहिन्य कुल ८२ पद्यों की यह रचना भाषा और भाव की दृष्टि से संतुलित है। 'रंगरत्नाकरनेमिनाथप्रबन्ध' नेमिनाथ के चरित्र के सरस अंश पर आधारित रस प्रधान रचना है। इसका मङ्गलाचरण कवि ने संस्कृत श्लोक से किया है । इसका रचना काल नहीं दिया गया है। इसके छंदों में भाषा की लय और प्रवाह के कारण गेयता है, यथा तुझ तनु सोहइ उज्जलकति, पूनिम ससिहर परि झलकंती, पय घमधम धुग्घर धमकंती, हंस गमणि चालइ चमकंती। चालइ चमकती, जगिजयवंती, वीणा पुस्तकं पवर धरइ, करि कमल कमंडल काने कुंडल रविमंडल परिकति करइ ।। 'दृढ़प्रहारीसंझाय', श्रावकविधिसंझाय, दान की संझाय और कई अन्य संझाय आपने लिखे हैं जैसे पंचतीर्थसंज्झाय, पंचविषयसंज्झाय, आठमदनीसंज्झाय, सातवारनीसंज्झाय इत्यादि। आपके लिखे स्तवनों की संख्या भी काफी है जैसे पार्वजिनस्तवनप्रभाती, चतुर्विशतिजिनस्तवन आदि बड़ी लोकप्रिय और मधुर रचनायें हैं। चतुर्विंशतिजिनस्तवन मालिनी छन्द में है इसका एक छन्द उदाहरणार्थ प्रस्तुत है'कनकतिलक भाले हार हीइं निहाले; ऋषभ पयपखाले पापना पंक टाले । अर जिनवर भाले फूट रे फूल माले, नरभव अजुआले रागनिइं रोस टाले ।' नवपल्लवपार्श्वनाथस्तवन एक ऐतिहासिक स्तवन है। इसमें ३५ पद्य हैं, इसकी रचना सं० १५५८ में हुई है। इसमें नवपल्लव पार्श्वनाथ की तीर्थ यात्रा का मनोहर वर्णन किया गया है । ___ 'गर्भवेलि' और 'गोरीसांवलीगीत' लोकगीत के काव्य रूप हैं। सन्त तुलसी ने जैसे कहा है धर्म न अर्थ न काम रुचि, गति न चहौं निर्वाण । जन्म जन्म रतिराम पद, यह वरदान न आन ॥ उनसे काफी पहले कविलावण्यसमय 'गर्भवेलि' के अन्त में कहते हैं :_ 'ऋद्धि वृद्धि राणिम घणी, भूम अरथ भण्डार, नविमांगू मुगतामणी, गढ़मढ गजतोखार, १. श्री देसाई-जै० गु० क०-भाग १, पृ० ८६ २. वही, पृ० ८८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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