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________________ - गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास जिहां पोढां जिणहर पोसाल, वसइ लोक दीपता दयाल शांतिज (साती) नगर मंडि सुविशाल गायु करसंवाद रसाल । संवत पनरपंचिहत्तरइ, मुनि लावण्यसमइ उच्चरइ, पामी चंद्रप्रभ जिनराय, बेकर संपिइ पूज्जइ पाय ।' किसी-किसी प्रति में 'संवत पनर चमोतरे' भी मिलता है । अन्तरीक पार्श्व जिनछंद सं० १५८५-८६ वैशाख शु० ३ को लिखी गई। रावण मंदोदरी संवाद में रावण को सीताहरण के अनौचित्य पर मंदोदरी चेतावनी देती है, यथा : ४८२ 'सूतेलो सींह जगावीउ, नडीओ वासग नागरे, सीत हरी तस् क इठा राम ना पाग रे । सांभलि रावण राजीआ, जासे महियल माम रे, सती सीता त कां हरी, विरी वंकडो रामरे । सांभलि । 1 देवराजवच्छराज चौपाई आनन्दकाव्यमहोदधिमौक्तिक में प्रकाशित है । इसमें देवराज का चरित्र ६ खंडों में चित्रित किया गया है । यह एक सरस काव्य है किन्तु इसका रचना काल कवि ने नहीं दिया है । 'सुमतिसु रिसाधुविवाहलो' ऐतिहासिक रास संग्रह, भाग १ में प्रकाशित है । इसमें सुमतिसूरि का जीवनवृत्त है । इनके पिता जावरनगर वासी श्री गजपति शाह और माता संपूरी देवी थे । इनका जन्म सं० १४९४ में हुआ, रत्नशेखरसूरि से सं० १५११ में दीक्षा ली और सं० १५१८ में इन्हें सूरि पद मिला । सं० १५१८ में सूरि पद का महोत्सव हुआ । उसका इसमें वर्णन किया गया है। रास की भाषा शैली के नमूने के रूप में उस समय की पंक्तियां उद्धृत की जा रही हैं जब नीपराज ( सुमतिसूरि ) दीक्षा की अनुमति अपनी मां से मांगते हैं, मां समझाती है'ऋद्धिरमणि सुख भोगवइ वछ करु वीवाह, मात भणइ मझमन तणउ वछ पूरि उमाह संयम छइ अति दोहिलउ वछ खडगनी धार, ऊन्हउं आछण पीवऊं भोजन एक बार उन्हालइ अति दाझवउ जावउं देश विदेसि, परघरि भिक्षा मांगवी वछ किम गमेसि | 2 १. श्री देसाई - जै० गु० क० - भाग १, पृ० ८३ २. ऐतिहासिक रास संग्रह, भाग १ 'सुमतिसूरि साधु विवाहलो' For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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