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________________ ४८० मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास पहिल तिथिनी संख्या आणि, संवत जाणि इणि अहि नाणि, वाण वेद जउ वांचउ वाम, जाण वर्ष तणु अ नाम, वासुपूज्य जिणवर वारम् चैत्रथि को मास जिते नमु, अजूआली इग्यारिसि सार, तहीइ सुरगुरु गिरुउ वार । छन्द वन्ध का वर्णन करता हुआ कवि कहता है दूहा चउद अनइ च उपइ, इक जपमाली पूरी हुई। ऊपर अधिको पाठ बखाणि, ते संख्याना भणियो जाणि ।' आलोयण विनती की रचना सं० १५६२ वामज नगर में हुई, इस संबंध में ये पंक्तियाँ देखिये : संवत पनखासिठई आदिश्वर रे, अलवेसर साष तु, वामिज मांहिवीनव्यो, सीमंधर रे देवदर्शन दापि तु ।' कवि प्रारम्भ में सीमंधर देव से अपने पापों के क्षमा की प्रार्थना करता है। नेमिनाथ हमचड़ी (सं० १५६२) में कवि ने सरस्वती के साथ नेमि और राजुल का स्मरण करता हुआ कहता है : 'सरस बचन दीओ सरस्वती रे गायस्यु नेमकुमारो, सामल वरण सोहामणो, ते राजीमती भरतारो रे हमचडी।' रचनाकाल 'संवत पनर बासठे रे गायु नेमिकुमारो, मुनि लावण्यसमय इमबोलइ, वरतिउ जयजय कारो रे।' सेरीसा पार्श्वनाथ स्व० भी सं० १५६२ की रचना है। यह सेरीसा में स्थापित पार्श्वनाथ का स्तवन है। संवत पन्नरवासट्टि प्रसाद सेरीसातणो, लावण्यसमे इमि आदि बोले नमो नमो त्रिभुवनधणी। वैराग्य वीनती (सं० १५६२ आसो शुदी १०) में आदीश्वर से वैराग्य प्राप्ति के निमित्त बिनती की है, यथा 'जय पढम जिणेसर अति अलवेसर, आदीश्वर त्रिभोवन धणीय, शेजेज सुखकारण सुणि भवतारण वीनतडी सेवक भणीय । १. श्री दे० जै० गु० क०, भाग १, पृ० ७२ २. वही, पृ० ७४-७५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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