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________________ मरु-गुर्जर जैन साहित्य ४७९ 'क्रोधनथी पोषिउ मइ रती, बात कहीछई सधली छती, बोलिउ श्री सिद्धान्त विचार, तिहांनिदानु सिउं अधिकार १७४।' जीव सबे मझ बंधव समा, पडइ वरांसइ धरिज्यो क्षमा। जे जिम जाणइ ते तिमकरू, पणि जिनधर्म खरुआदरु ।'1 इसमें लावण्यसमय ने अपनी गुरु परम्परा में सोमसुन्दर से लेकर लक्ष्मीसागर, सोमंजय, सुमतिसाधु और समयरत्न को सादर स्मरण किया है। इसका रचना काल बताते हुए उन्होंने लिखा है : ___ 'संवच्छर दह पंच विशाल, त्रिताला वरषे च उसाल, काती सुदि आठमि शुभ (रवि) वार, रची चउपइ बहुत विचार ।' अन्त में कवि कहता है नरनारी अकमनां थइ, भणइं गुणइ जे से चउपइ, मुनि लावण्यसमय इम कहइ, ते मन वांछित लीला लहइ ।१८१। स्थूलिभद्र 'एकवीसो' की रचना 'संवत पंनर त्रिपनइ संवत्सरे, दिवस दीवाली तणउ, अर्थात् सं० १५५३ दीपावली के दिन हुई। इसमें स्थूलिभद्र की स्तुति २१ छन्दों में की गई है। इसके आदि और अन्त की पंक्तियां इस प्रकार है :आदि 'आविउ आविउ रे आविउ जलहर चिहुं पषे, सोहाविउरे मास आसाढ़ सुणउ सखे । नित समरू रे जेहनु नाम सदा मुषे, सोइ सामी रे स्थूलिभद्र जो नामइ रखे ।' अन्त 'श्री स्थूलिभद्र मुनीन्द्र राजा चित्ति चोषइ गाइउ, लावण्यसमय सुरंगि बोलइ अंगि निरमल थाइउ ।२१। 'गौतमपृच्छा चौ०' (सं० १५५४ चैत्र सुदी ११ गुरुवार) यह भीमशी भाणेक द्वारा प्रकाशित रचना है। इसका मंगलाचरण इस प्रकार है : 'सकल मनोरथ पूरवइ, चउबीसमुजिणंद, सोवन वन्न सोहइसदा, पेरव्यउ परमाणंद ।' इसका रचनाकाल 'वझौवल शैली' में कवि ने इस प्रकार बताया है : 'अ चउपइ रची चउसाल, कुण संवत नई केहु काल, वरिस मास कहिस्यू दिनवार, जोइलेज्यो जाण विचार । १. श्री देसाई-जै० गु० क० भाग १, पृ० ७० २. वही, पृ० ७१–७२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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