________________
४७८
मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास कृत आंख-कान संवाद, यौवन-जरा संवाद इनके कर संवाद या रावणमन्दोदरी संवाद से प्रभावित हो सकते हैं। आपके कृतित्व का विस्तृत परिचय साहित्य संसद की तरफ से स्व० मणिलाल बकोरभाई व्यास ने प्रस्तुत किया है। आपने खूब बिहार एवं भ्रमण करके धर्मोपदेश दिया और जैनधर्म की प्रभावना की। ___वंशपरिचय-आपका वंश परिचय 'विमल प्रबन्ध' की प्रशस्ति में देखा जा सकता है। यह विमलमन्त्री पर आधारित प्रसिद्ध ऐतिहासिक रचना है जिसे मणिलाल व्यास ने सम्पादित-प्रकाशित किया है। इसके अनुसार आपके दादा मंग पाटण से आकर अहमदाबाद में बसे थे। इनके तीन पुत्रों में श्रीधर आजादपुर में रहते थे। श्रीधर के चार पुत्र वस्तुपाल, जिनदास, मंगलदास और लघुराज तथा एक पुत्री लीलावती थी । लघुराज ही आगे चलकर लावण्यसमय के नाम से प्रख्यात हुए। आपका जन्म सं० १५२१ में हुआ था। आपने आठ वर्ष की अवस्था में सं० १५२९ में लक्ष्मीसागरसूरि से दीक्षा ली और बड़े मनोयोगपूर्वक शास्त्राभ्यास में लग गये। गुरुकृपा से १६वें वर्ष में ही आपकी सरस्वती जागृत हो गई और तबसे आपने साहित्य सृजन प्रारम्भ कर दिया। आपकी रचनायें संवत् १५८९ तक की लिखी प्राप्त हैं । अतः यह निश्चित है कि आप १६वीं शताब्दी के अन्तिम दशक में वर्तमान थे। आपकी प्रमुख रचनायें ये हैं :--सिद्धान्त चौपइ - लुकावदनचपेटा, स्थूलिभद्रएकवीसा, गौतमपृच्छा चौ०, आलोयण विनती, नेमिनाथ हमचडी, सेरीशापार्श्व स्तव, रावण-मन्दोदरी संवाद, वैराग्यवीनती, सूरप्रियकेवलीरास, विमलप्रबन्ध, करसंवाद, देवराजवच्छराज चौ०, अन्तरीक पार्श्वजिन छंद, खिमर्षिरास, बलिभद्ररास, यशोभद्ररास, सुमन्तिसाधुसूरि विवाहलो, रंगरत्नाकर नेमिनाथ प्रबन्ध, दृढ़प्रहारी सज्झाय, पार्श्वजिन स्त० प्रभाती, चतुर्विंशति जिन स्त०, नवपल्लवपार्श्व स्त०, गर्भवेलि, आदिनाथभास, गोरी सांवली गीत विवाह आदि । 'सिद्धान्त चौ०' की रचना आपने मूर्तिपूजा निषेधक श्री लोकाशाह के मत का खंडन करने के लिए किया था। इसका नाम 'लुकावदनचपेटा' भी है । कवि ने लिखा है :'अ चउपइ रची अभिराम, लुकटवदनचपेटा नाम ।'
इस नाम से कवि का प्रतिपक्ष पर अमर्ष अभिव्यक्त होता है, किन्तु कवि का कथन है कि यह रचना क्रोधपूर्वक नहीं की गई है बल्कि सिद्धान्त
पर विचारार्थ लिखी हैJain Education International
www.jainelibrary.org
For Private & Personal Use Only