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मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
लावण्यरत्न - आप तपागच्छीय हेमविमलसूरि की परम्परा में सुरहंस के शिष्य थे । आप ने 'मत्स्योदर रास', वत्सराज-देवराजरास, यशोधर चरित्र, कलावतीरास और कमलावतीरास की रचना की । यशोधरचरित्र - रास की रचना सं० १५७३ में हुई, यथा
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'विवेकरत्न श्री भणी आदरि, संवत पंनर सय त्रिहुत्तरी, देवगिरि नगरे कति मासे, यशोधर चरित्र उल्लासि । "
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इसमें कवि ने तपागच्छीय आचार्य सोमसुन्दरसूरि, मुनिसुन्दरसूरि, रत्नशेखरसूरि, लक्ष्मीसागरसूरि, सुमतिसाधुसूरि, हेमविमलसूरि और - धनदेव का यथाक्रम वर्णन किया है। सुरहंस इन्हीं धनदेव के शिष्य थे । प्रारम्भ में कवि ने भगवान् महावीर और गौतम गणधर की नंदना की है, यथा :
'देवगिरिमंडन देवतरु वंदी वीरजिणंद, इंद सवे सेवा करें दिइ जे परमाणंद, गोयम गणहर गुरवरसरण सरण करी मनखंत्ति ।' तिहां यशोधर रायना नव भव नवरसबंध, लावण्य रत्न कवि इम कहे सुणो (ओह ) संबंध । '
वत्सराजदेवराजरास का रचनाकाल सं० १५७१ पौष वदी १ की - सूचना कवि ने इस प्रकार दी है
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'कला बहुत्तरि गुण आधारो, पंचमहन्वय सुद्धाचारो, बंदिससो गुरुसारो । लावण्यरत्न तसुसीस हरसिं, संवतपनर एकोत्तर वरसि, पोसि पड़वे दिवस | देवगिरि नगरि कीधउ रास, वच्छराज नुं सरस निवास,
भणति ते सुख लहसइ ।"
इसमें भी सोमसुन्दर से सुरसंह तक की गुरु परम्परा गिनाई गई है । प्रारम्भ में गौतम गणधर तथा देवी सरस्वती की वन्दना की गई है, यथा'गोयम गणहर विघनहर, मणहर वचन विलास, जास पसाई प्रामीइ, ते प्रणमी करूं रास । बंभसुता हंस गामिणी, सामिणी कवियण माय, ते सरसति से सदा, जिम प्रामु जसवाय ।
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१. श्री देसाई - जै० गु० क० भाग १, पृ० १३० - १३१ - २. वही, भाग ३, पृ० ५६८-५६९
३. वही
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