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________________ ४७२ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास लक्ष्मीरत्न सूरि –इनके सम्बन्ध में १६वीं और १७वीं शताब्दी को लेकर मतभेद के कारण इन्हें १७वीं शताब्दी में रखा जा रहा है । लक्ष्मी. रत्न मूरि शिष्य कृत-सुरप्रियकुमाररास (द्रष्टव्य १७वीं शताब्दी)। लक्ष्मी सागर --आपको सूरिपद सं० १५१८ में प्राप्त हुआ। आपकी प्रसिद्ध रचना 'वस्तुपालतेजपालरास' (५८ गाथा) इसी समय की कृति होगी। यह रचना प्रकाशित है। इसका प्रारम्भ इन पंक्तियों से हुआ है : 'वीर जिणेसर नमिय पाय, अने गोयम सामी, सरसती तणे सुपसाउले ओ, कहिसिउं सिरिनामी। वस्तुपाल ते जगि तणो अ, अम्हे बोलिस्यु रासो, भरह क्षेत्र धुरि गुजरात अणहिल ने वासो।' इसकी अन्तिम पंक्तियाँ इस प्रकार हैं : 'लक्ष्मीसागर बोलिउं मा, गिरुओ अह जि रास सु० वस्तुपाल तेजिग तणो मे मा, चरित सुणे नरनारि सु० तेहने घरि अफलाफले मा, अष्ट सिद्धि पूरि सु० ।। इसमें प्रसिद्ध मंत्री वस्तुपाल तेजपाल का चरित्र चित्रित है । लक्ष्मीसागर सूरि शिष्य -लक्ष्मीसागर के किसी अज्ञात शिष्य ने एक हीयाली गीत (गा० ६) लिखा है जिसकी कुछ पंक्तियाँ भाषा के नमूने के रूप में दी जा रही है : 'सकल उत्तम नारि छइ बाल कुआंरि, घवल वर्ण दीसइ सा नारि । पूछ उ तपगच्छ गुरुराय, अर्थ जाणइ लक्ष्मीसागर सूरि राय, ये हइआली चंग, भणतां उपजइ रंग, आदर करी लिउ सनईरंगि ।' लक्ष्मीकल्लोल-आपकी लोकप्रिय रचना 'धन्नासज्झाय' का ठोक रचनाकाल ज्ञात नहीं हो सका है किन्तु यह निश्चित है कि आप १६वीं शताब्दी के कवि हैं। इस सज्झाय में प्रयुक्त ढाल की तर्ज बड़ी लोकप्रिय हुई थी। इसकी प्रारम्मिक पंक्तियाँ इस प्रकार हैं१. श्री देसाई-जै० गु० क०-भाग ३, पृ० ४७३ २. वही, पृ० ४९६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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