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________________ ४७० मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास 'करजोड़ी लखमण भणइ अह कलियुग कुडुरे, कुड़ नि रुड जग रलीयामण अजगगुरु हुअणजाणतुं, गुण नवि लहुपार रे, पार निसार करउ सेवक तणी ।१।' 'नेमिनाथस्तवन' का रचनाकाल बताते हुए कवि कहता है : 'पनर उगणीसिइ कातिमासि, भणीइ अति लखमण मनि उल्लास, सुकुल बीजनइ आदीतवार, जइवंता जगि नेमिकुमार।" 'महावीरचरित' का रचनाकाल इस प्रकार बताया गया है : 'पनर एकवीसु संवछर सार, फागुणं वदि सातमि सोमवार, कयू तवन मनि धरि आणंद, जगि जयवंता वीर जिणंद । इसकी प्रारम्भिक पंक्तियाँ देखिये : 'पहिलू धुरि समरु अरिहंत, आठ कम्मनु आणइ अन्त, वाग वाणि धुअ ब्रह्मा तणी, समरू सरसति हूं साभली।' इसकी अन्तिम पंक्तियाँ इस प्रकार है : श्री महावीर तणू चरित्र, भणता गुणतां जन्म पवित्र, अकमना जे नर सांभले, ते घरि नश्चइ अफलां फलइ ।' जिननमस्कार' का मंगलाचरण इन पंक्तियों से हुआ है :-- 'पढम जिनवर पढम पाय प्रणमेवि, सेब्रुज-गिरिवर मंडणं नाभिराय-कुलिचंद-स्वामीय । सतभाष्या जे परवरू, करइ सेवनसि दवसि धामीय। युगलाधर्म निवारिउ, मुगति रमणि उरिहार, वृषभलंछत ऋषभ जिन, मरुदेवी तणु मल्हार ।' इसके अन्त में कवि ने लिखा है : 'अक मना प्रणम्यू सह मनि समरु नवकार, कर जोड़ी लखमण भणि सफल करू संसार ।' १. श्री देसाई-० गु० क०-भाग १, पृ० ११६ २. वही भाग ३, पृ० ४६२-४६३ और भाग १, पृ० ११६ ३. वही ४. वही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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