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________________ ४६६ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास रत्नाकरसूरि-आप कवि देपाल के समकालीन थे। आपने 'आदिनाथजन्माभिषेक' और 'वसंतविलास' नामक रचनायें की। प्रथम रचना 'विविधपूजासंग्रह' और 'वसंतविलास' प्राचीन गुर्जरकाव्य संकलन में प्रकाशित है। देपाल के पुत्र चन्द्रपाल द्वारा आत्म पठनार्थ लिखित प्रति में वसंतविलास के लेखक का नाम रत्नाकरसूरि दिया गया है। 'आदिनाथजन्माभिषेक' का प्रारम्भ इस प्रकार हुआ है विनीय नयरी विनीय नयरी नाभि नियमेहि, मरुदेविहि ऊयरिसर, राय हंस सारिच्छ सामिय, सिरि रिसहेसर पढम जिण, पढम रायवर वसहगामिय । वसह अलंकिय कणय तj, जागो जग आधार, तसु पयवंदिय तसु तणो. कहिशुजन्म सुविचार ।१।। इसकी भाषा अपभ्रंश-गर्भित है। इसमें आदिनाथ के जन्मोत्सव का वर्णन है। वसंतविलास की रचना सं० १५०८ भाद्र शु० ५ गुरुवार को हुई। इसकी भाषा प्रथम रचना की तुलना में अधिक सरल और स्वाभाविक बोलचाल की मरुगुर्जर है, उदाहरणार्थ प्रारम्भिक छन्द उद्धृत हैं। "पहिलू सरसति अरचीसू, रचीसू वसन्त विलास, वीणा धरइ कर दाहिण, वाहण हंसलु जासु। पहुतीय तिउणी हिव रति वरति, पहुती वसंत, दह दिसि पसरइ परिमल, निरमल थ्या नभ अंत ।" इसमें प्रकृति का वास्तविक रुचिपूर्वक एवं मनोहारी रूप में वर्णन किया गया है, न कि केवल परम्परा का निर्वाह करने के लिए उद्दीपन विभाव रूप में किया गया है । नमूने के तौर पर अन्तिम पंक्तियां प्रस्तुत हैं "दमनह गुणि मदमातउ, रातउ रूपिहिं भृगु, कुन्द कुसुम रमाउइ, छांडइ चांपुला संग । इणिपरि नितु प्रिय रंजवइ, मंजु वइण इण ठाइ, धन धन ते गुणवन्त, वसंत विलास जे गाइ ।८६।" इन पंक्तियों में वसंतश्री का सुन्दर वर्णन काव्योचित भाषा शैली में में किया गया है। १. श्री मो० देसाई-जै० गु० क.--भाग १, पृ० ४१-४२ २. वही, भाग ३, पृ० ४५४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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