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मरु गुर्जर जैन साहित्य 'सिरि अब्बुय गिरिवर सिहर-सोहण रिसह जिणंद,
पभणउ तुह पयपउम जिण, नमि नरिंद सुरिंद ।' इनकी दूसरी रचना 'आदीश्वरस्तवन' में ४९ छन्द हैं। यह मरुगुर्जर की रचना है । आदीश्वर की प्रार्थना करता हुआ कवि कहता है:
"आदि जिनवर आदि जिनवर आदि जगनाथ, आदि सष्टि रचना रचीअ, विविध वर्ण व्यापार मांडीय,
राजरंग रामा रमीअ व्यमीय काम मोह-मान छाडीय ॥' कवि ने अपने गुरु का स्मरण करते हुए लिखा है--
"बडतप पक्षि चारित्र चोखइ पंडित श्री जयधीर,
तास सीस रत्नसुन्दर पभणइ, मानुष पर बरवीर । इसका अन्तिम छन्द इस प्रकार है
"आज अपूरब दिन दिन करयु, मइ जिनपति गुण अणसरयु,
मई पुण्य भडार ज भरयु, हूं दुषसागर ऊतरयु ।४९।' इन उद्धरणों से यह विदित होता है कि यह कृति सरल एवं स्वाभाविक मरु-गुर्जर में लिखी गई है जिसमें आदीश्वर की प्रार्थना है।
रत्नशेखर-रत्नशेखर नामक कई जैनाचार्य अलग-अलग गच्छों में समय-समय पर हो गये हैं। गौतमरास के लेखक रत्नशेखर की चर्चा १५वी शताब्दी में हो चुकी है। १६वीं शताब्दी में कम से कम दो रत्नशेखर मिलते हैं उनमें से एक मुनिसुन्दर सूरि के शिष्य थे, जिन्होंने संस्कृत में 'श्राद्धप्रतिक्रमण' आदि ग्रन्थ लिखे । इनके शिष्यों में सोमदेव, चारित्ररत्न और नंदिरत्न आदि उल्लेखनीय हैं। सोमदेव कृत 'कथामहोदधि' महत्त्वपूर्ण रचना है।
रत्नचूडरास सं० १५१० के आसपास की लिखित एक कृति है जो शायद इन्हीं रत्नशेखर की रचना है। रत्नसिंहसूरि के शिष्य की रत्नचूडरास और इस रत्नचूडरास का जब तक पूर्ण पाठ न प्राप्त हो तब तक कुछ निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता। यदि ये दोनों रत्नचुडरास एक ही कृति हो तो इसका कर्ता रत्नशेखर के बजाय रत्नसिंहसूरि का कोई शिष्य होगा। १. मो० द० देसाई-जै० गु० क०-भाग ३, पृ० ५०४ २. वही ३. वही भाग १ पृ० ४७, श्री नाहटा-परम्परा पृ० ६०
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