SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 479
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४६२ मरु - गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास पद आपने लिखे हैं जिनमें से अधिकांश नेमि राजुल के वियोग वर्णन से सम्बंधित हैं । इन पदों में प्रेम और विरह की मार्मिक व्यंजना हुई है । कुछ पदों में वैराग्य एवं जगत् की असारता आदि पर भी प्रकाश डाला गया है । इस प्रकार यशोधर की प्रतिभा में विशदता, विषयवस्तु में विविधता और वर्णन में मौलिक कुशलता दिखाई पड़ती है । रत्नमण्डल गणि - आप तपागच्छीय आ० सोमसुन्दरसूरि अथवा उनके शिष्य सोमदेवसूरि के शिष्य थे और विक्रम की १६वीं शताब्दी के पूवार्द्ध में विद्यमान थे । यह सूचना श्री अम्बालालशाह ने दी है । आपने संस्कृत में सुकृतसागर, मुग्धमेघालंकार और जल्पकल्पलता आदि ग्रन्थ लिखे । मरुगुर्जर में आपकी एक सरस काव्य कृति 'नारीनिराशफाग' है जो प्राचीन फागुसंग्रह में प्रकाशित है । इस फाग की समग्र संरचना 'वसंतविलास' की तरह है किन्तु वह पूर्णतया शृंगारिक रचना है और यह नारी और शृंगार से निराश करने वाली रचना है । इनकी कई प्रतियाँ उपलब्ध हैं । किसी प्रति में इनका नाम रत्नमंडलगणि, किसी में 'सुरयणमंडन' और किसी में 'रैवतरत्नमंडन म्गण' भी मिलता है । इसमें एक संस्कृत का छंद और उसके बाद एक मरुगुर्जर का छंद आया है । नारी के प्रत्येक अंग की अलंकारिक उपमा को अन्यथा रूप से घटित करके उससे विरक्त रहने का सन्देश दिया गया है । जैसे नेत्रों पर कवि की उक्ति देखिये : 'विकसित पंकज पाषंडी' आषडी ऊपम चालि, ते विषसलिल तलावली सांवली पापिणि पालि । अथवा मुख के प्रति कवि का यह कथन देखिये :'नारी नगरि मुखपोलि, कपोलि कपाट विचार, ज्योति जलण मय कुंडल कुंड लगार न सार । इसी भाव को संस्कृत में भी प्रस्तुत किया गया है, यथा 'नरक पुरि पुरन्ध्या गोपुरं वक्त्ररन्ध्रं,, किल कलित कपोलोद्घाटतादूक कपाटं ।' नारी की त्रिबली को त्रिविधकपट भरी रेखा और क्षीण कटि को युवकों को क्षीण करने वाली बताया गया है । नारी से निराश होकर जिसके मन में शमरस सुन्दरी का निवास हो जाता है उसी के जीवन में सुप्रभात का प्रकाश आता है: -: Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy