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________________ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास स्वयं इन्हीं द्वारा सं० १५८४ में लिखा गया है। अतः निश्चित है कि उस समय ये कार्यक्षम थे। इनकी लिपि सुन्दर एवं सुपाठ्य है । इस प्रकार ये एक उत्तम कवि और सुलेखक प्रमाणित होते हैं। इनकी तीन रचनायें उल्लेखनीय हैं (१) नेमिनाथगीत, (२) मल्लिनाथगीत और (३) बलिभद्रचौपइ । अन्तिम रचना सबसे बड़ी तथा महत्त्वपूर्ण है । इसे कवि ने सं० १५८५ में स्कन्धनगर के अजितनाथ मन्दिर में पूरा किया था। इसमें श्रीकृष्ण और बलराम के भातृ-प्रेम की सुन्दर झलक दिखाई गई है । आपकी भाषा निखरी हुई है जिस पर गुजराती की अपेक्षा राजस्थानी का प्रभाव अधिक है । आपकी काव्यशैली परिमार्जित है । ___ आपने नेमिनाथ के जीवन पर अधिक गीत लिखे हैं जिनमें राजुल के वियोग का मार्मिक वर्णन हुआ है। राजुल के सौन्दर्य वर्णन में कवि की सौन्दर्य भावना एवं सहृदयता का पूरा परिचय मिलता है । नेमिनाथ प्रथम गीत २८ पद्यों का सं० १५८१ में लिया गया, जिसका विवरण कवि ने इस प्रकार दिया है : - 'संवत पनर एकासीह जी वंसपालपुर सार, गुण गाथा श्री नेमिनाथजी, नवनिधि श्री संघवार हो स्वामी। राजुल की सुन्दरता का वर्णन देखिये : 'रे हंस गमणीय मृग नयणीय स्तवण झाल झबूकती, तप तपिय तिलक ललाट सुन्दर वेणीय वासुडा लटकती, खलिकंत चडीय मूखि वारीय नयन कज्जल सारती, मलयतीय मंगल मास आसो इम बोली राजमती।' दूसरे नेमिनाथ गीत में राजुल नेमि की बाट जोहती है_ 'नेमि जी आवु न घरे घरे. बाटडिया जोइ सिवयामा लाडली रे। तृतीय गीत ६८ पद्यों का है इस में नेमिनाथ के विवाह की घटना का मुख्य रूप से वर्णन हुआ है । राजुल की शोभा देखिये : 'पायेय नेउर रणकणिरे धूधरी नु धम्मार, कटियंत्र सोहि रुडी मेखलारे झूमणु झल्कसार । बांकीय भमरि सोहामणी रे, नयने काजल रेह, कामधनु जानो तोडीयु रे, नर भग पाडवा एह । १. डा० क० च० कासलीवाल-राजस्थान के संत कवि, पृ० ८४-८५-८६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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