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________________ ४५४ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास रचनाकाल-'ता मुनि ऊगी नुरतीवेग, तह निवसइ परजानउ थेग, पणरह सइ इक्काणु वरसि, चैत्र शुदि मितियानइ दिवसि, संवत विक्रमरायह तणउ, वछर शुभकृत नामि हे भणउ मंगलवारह कियउ कवित्त, भरणी नामिहि छइ नखित्त।' गुरुपरम्परा-जिनराज सूरि तसु अनुक्रम हुवउ, निर्मल न्यान वसइ जसु हियउ, कमलचन्द्र तसु पट्टि गणीस, महिचन्द तिहनउ जाणि सुसीस ।। इस रास की भाषा सरल मरुगुर्जर है। इसमें गुजराती का प्रभाव दिखाई पड़ता है। इस कृति में कवि ने अन्त में यह भी कहा है कि उसने रस, छन्द आदि का उत्तम प्रयोग किया है। कृति को देखते हुए कवि का यह दावा थोथा नहीं लगता। इस रचना में धर्मोपदेश को काव्य की सरस शैली में प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है । अन्तिम पंक्तियां इस प्रकार हैं "नवरस सहित अछइ चउपइ, जो भवीयण जाणीसइ सइ, तेहना पाप पडल सवि जाहि, देवतणा सवि सुख विलसाहि ।६०६॥ माणिक्यराज--आप पद्मनंदि के शिष्य थे। आपने अपभ्रंश प्रधान भाषा शैली में अमरसेनचरिउ और नागकुमारचरिउ नामक दो रचनायें की। प्रथम रचना 'अमरसेनचरिउ' में राजा अमरसेन का चरित्र चित्रित किया गया है जो धार्मिक प्रकृति का राजा था। वह संयम और तप का निष्ठापूर्वक पालन करता था। व्रत नियम और धर्म-कर्म में कभी प्रमाद नहीं करता था अतः उसे सद्गति प्राप्त हई। इनकी दूसरी रचना नागकुमारचरिउ (सं० १५७९) में नौ संधियां हैं। इसकी कथा पुष्पदन्त के नागकुमारचरिउ पर आधारित है । इन रचनाओं को प्रायः विद्वान् अपभ्रंश की रचनायें मानते हैं और कवि ने सायास अपभ्रंश की रूढ़ काव्य शैली का प्रयोग भी किया है अतः इन्हें अपभ्रंश की प्राचीन धारा की कृतियाँ मानना ही उचित है। श्री नाहटा ने माणिकराज कृत 'नलदमयन्तीरास'3 की सूचना दी है । यह रचना सं० १५९० जयपुर में रची गई। इसका विवरण उन्होंने नहीं दिया है अतः यह स्पष्ट नहीं हो सका कि ये माणिकराज पद्मनन्दि के शिष्य माणिक्यराज ही हैं अथवा अन्य कोई कवि हैं । १. देसाई-जै० गु० क-भाग ३, खंड २, पृ० १४९७-९८ २. एवं भाग ३, खंड १, पृ. ५९५ ३. श्री अ० च० नाहटा-मरु गु० ज० क०-पृ० १६, क्रम सं० २०० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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