SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 470
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मरु-गुर्जर जैन साहित्य ४५३ पुन्य काजि जे न करइ प्रमाद, सुषि सुषि तिहि नहीं विषाद, विसमां विघन वलइ तीह जाइ, वत्सराज जिम सवि सुख थाई ।' अन्त में भी कवि धर्म की प्रशंसा करता है, यथा'धम्म काजि मे संबन्ध सुणी, आदर करू जिण धम्मह जाणी, धरम प्रभावइं हुइ रुधि वृद्धि, सयल संघनइ वंछित सिद्धि ।११८।। इस प्रकार कवि ने विभिन्न महापुरुषों के चरित्र का उदाहरण देकर सत्य, दान, धर्म आदि चारित्रिक गुणों का उत्कर्ष दिखाया है। एक ही वर्ष और एक ही स्थान गोपमंडली में सम्भवतः तीनों रचनायें लिखी गईं इससे इनकी भाषा शैली में भी काफी एकरूपता दिखाई पड़ती है। भाषा सरल किन्तु प्रवाहपूर्ण मरुगुर्जर है। महिन्द या महाचन्द्र -आपने वि० सं० १५८७ में १६ वें तीर्थंकर शान्तिनाथ का चरित्र 'संतिगाहचरिउ' नामक काव्य में चित्रित किया है। यह रचना अपभ्रंश में की गई है किन्तु कालप्रवाह को उल्टे ले जाने में कठिनाई होती है। इसकी भाषा कृत्रिम अपभ्रंश बन गई है और बीच बीच में मरुगुर्जर या पुरानी हिन्दी के टुकड़े साफ दिखाई पड़ते हैं। मरुगुर्जर की रचना न होने के कारण इसके विस्तार में जाना समीचीन नहीं है । इसका उल्लेख मात्र यह सूचित करने के लिए किया गया है कि १६वीं शताब्दी में भी काव्य की एक पुरानी धारा अपभ्रंश भाषा शैली में प्रवाहित हो रही थी। महीचन्द्र -आप खरतरगच्छीय आचार्य जिनप्रभसूरि की परम्परा में कमलचन्द्र के शिष्य थे। आपने 'उत्तमचरित्रचौ०' (गा० २०४) की रचना सं० १५९१ चैत्र शु० ३, मंगलवार को जावणपुर (जौनपुर) में की। आप बाबर के पुत्र हुमायूं के समकालीन थे। इसमें उत्तम चरित्र के मुख्यगुणदान का माहात्म्य बताया गया है । कवि कहता है : "दानि परंपर धन लहइ, दान सुजसु जग होइ, उत्तम चरित राजा परइ, दान मिलइ सुरलोइ ॥" कवि रचना स्थान और तत्कालीन शासक का उल्लेख करता है, यथा 'जवणापुर छइ दुर्ग अपार, तेहना गुण किंम कहउ विचार, बाबर पातिसाह नइ पूत, हम्माउ सुलिताण जगत्ति। ५९९ । १. श्री देसाई-जैन गु० क०-भाग ३, पृ० ४७४-४७५ २. जैन ग्रन्थ प्रशस्ति संग्रह-भाग २, पृ. १२३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy