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________________ ४५० मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास महर्षिरास (गा० २४५ सं० १५३७), इलापुत्रचरित्र (१६५ गाथा) और नेमिगीत । धन्नारास-इसमें दान का माहात्म्य बताया गया है । कवि लिखता है : 'दानगिरुउ दानगिरुउदानि जसकित्ति, दानहि वसित्रिणइ भुवनदानमान आपई नराहिव दान दूरिय नासई सयल, दानि सेव सारइ सुरा हिव, दान जेम धन्नइ दीयो, पन्नहि पामीय पात, सावधान तुम्हि सांभलउ, पूरबभव अवदात ।' रचनातिथि- 'सई हत्थिथापीय तिणि गुणहारा, गुणवंत सीलसुन्दर सारा, वारीय जिणि आणंगो। तास सीस मतिसेहर हरसिंहिं पनरहसइ चउदोत्तर वरसिंहि, कीयो कवित अति चंगो।। यहाँ पनरह सइ चउदोत्तर का अर्थ सं० १५१४ ही है। इस रास में दान की महिमा के उदाहरण रूप में धन्ना के चरित्र को प्रस्तुत किया गया है। 'नेमिनाथवसंतफूलडा' में नेमिनाथ का पावन और मधुर चरित्र है । इसकी प्रारम्भिक पंक्तियाँ ये हैं : 'सारद माइ पाय नमीजइ, मांगउ एक पसाय रे, नेमि जिणेसर ना भव गाइसु, लागउ मुझ मनि ठाउरे, श्री याववकूल मंडणउयादवकुल मंडणउ स्वामी नेमि जिणंद रे, भावइ जसु पयकमल जुहारइ सुस्वर इंद रे । कुरगडु (कूरघट) ऋषिरास में ऋषि की तपश्चर्या का वर्णन किया “गया है, लेखक कहता है : भावि भविक जन सांभलो तेह ऋषि ताणुं चरित्र, वाचक मतिशेखर कहि, जिम हुई जनम पवित्र। इसका अन्तिम छंद इस प्रकार है : 'कूरगड्नु लेइ संबन्ध, तप ऊपरि ओ कीयउ प्रबन्ध । वाचक मतिशेखर इम कहइ, भणइ ति संपद संपद लहइ ।' १. श्री अ० च० नाहटा-परम्परा प० ६० २. श्री देसाई.-जै० गु० क०-भाग १, पृ० ४९ ३. श्री देसाई -~-० गु० क०-भाग ३, पृ० ४६९ वात . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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