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________________ २९ ४४९९ मरु गुर्जर जैन साहित्य तसपटि श्री गुणनिधान सूरिंद, तस पट्टोधर सूरि नरिंद । तसु परिवारि पंडित गुणमेरु, तास सीस कहि हरसि धरेवि, चुपै वंधि करिसुं हुं सोइ, अहे विचार सुणियो सहुकोई । रचनाकाल --'संवत् पनर चुराणुइ, आसोइ बुधवारि, रचीउं मे सूत्र ऊपरिइ पत्तननयर मझारि । 'संग्रहिणीढालबंध' का रचना काल १६०५ पहले दिया गया है। इसका आदि पद्य इस प्रकार है : 'अरिहंता दिक पंच जे परमेष्ठी प्रधान, नमुं निरंजन चित्तस्युं मांगु अविचल मान ।' इसमें ५५० चौपाई छन्द हैं 'चउपइ दूहा थइ पंचसइ ऊपरिवली पचास, भाव सहित जे सांभलइ, भविया पुहतइ आस ।' इसके अन्तिम ढाल का ५५० वाँ छन्द देखिये :-- अह अर्थ निरूपम अमृत ऊपम सुण श्रवणे सुख करइ, विचार करता चित्त धरता कर्म कोडिनी दुख हरइ ।'' इन दोनों रचनाओं में विषयवस्तु एवं भाषा-शैली की दृष्टि में पर्याप्त साम्य है । दोनों में जैनधर्म के सिद्धान्तों का प्रवचन किया गया है। दोनों ही चौपाई और रास नामक प्रबन्ध-काव्यविधा में लिखी गई हैं। अतः दोनों के लेखक आगमगच्छीय गुणमेरु के शिष्य मतिसागर ही हैं। ये दोनों रचनायें गुजरात के दो नगरों पाटण और अहमदाबाद में लिखी गई हैं अतः: इनकी भाषा पर गुजराती का प्रभाव सहज ही द्रष्टव्य है। मतिशेखर-आप उपकेशगच्छीय देवगुप्तसूरि की परम्परा में शील-. सुन्दरसूरि के शिष्य थे। आप वाचक पद से विभूषित एक उत्तम कवि थे। उपकेशगच्छ मारवाड़ के ओसियाँ गाँव के नाम से प्रसिद्ध हुआ और इस गच्छ का प्रचार-प्रसार भी राजस्थान में अधिक रहा अतः आपकी रचनायें भी राजस्थान में ही लिखी गई होंगी। इनकी प्रमुख रचनायें निम्नांकित हैं :-धन्नारास (पद्य ३२८ सं० १५१४), मयणरेहारास (३४७ गाथा सं० १५३७), बावनी, नेमिनाथवसंतफुलडाफाग (१०८ गा०) कुरगडू १. श्री देसाई—जै• गु० क०-माग ३, पृ० ६१८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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