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४४६ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
भीम-आप श्रावक भक्त थे। आपने सं० १५८४ आषाढ़ वदी १४ शनिवार को नडियाद में अगड़दत्तरास' की रचना की। रचना का आदि-प्रथमइ प्रणमूसारदा, कवीअण केरी माय,
अविचल पद आपइ सदा, तूठी करइ पसाउ ।।
मूझ मूरख मनि ऊपनउ, भाव भलो अति सार,
अगडदत्त रिषि रायनु, रास रचिसि विस्तारि । रचनाकाल-अह रास रचीऊ चोसाल, कुण संवत ते केहु काल,
पनरशत चुराशी जेठ-अषाढह वदि सोहइ तेह, तिथिचौदशि सोहइ सपवित्र, वार शनैश्चर पुष्प नक्षत्र ।
रचिउ रास सयलो अकत्र, अगड़दत्तनू कहिउं चरित्र ।४८९।' पता नहीं क्यों श्री देसाई ने इसका रचनाकाल जै० गु० क०-भाग ३, में सं० १५७५ लिख दिया था; पुनः उसी भाग के दूसरे खंड में उसे सुधार कर सं १५८४ आसाढ़ वदी १४ लिखा है। इसमें दोहा और चौपाई छंद का प्रयोग किया गया है । कुल छंद संख्या ४९१ है। इसमें पाँच खण्ड हैं, अन्तिम छंद देखिये :
_ 'पाँच खंड पोढे करी, रचीउ अह प्रबन्ध ।
भीम भणइ भवीअण सुणो, तु छूटइ भववंध ।४९१।। भीमराज-आपकी 'जीवदयारास' नामक ५ गाथा की एक छोटी रचना राग धन्यासी में निबद्ध प्राप्त है जिसके लेखक का नाम रचना के अन्तिम छन्द में भीमराज दिया हुआ है परन्तु यह पता नहीं कि यह भीमराज भीम श्रावक (अगड़दत रास के कर्ता) हैं या अन्य कोई भीम है। अन्तिम छन्द इस प्रकार है :
'षट दरशन मति अह छइ, जोउ समृत विचार,
भीमराज सांचउ कहि, धरमह धरि हो जीवदया सार। १. श्री देसाई-जै० गु० क० -भाग १, पृ० १३८ २. वही ३. वही भाग ३, खंड २, प० १४९५ ४. वही
भाग ३, पृ० ५०५-७७ ५. वही भाग ३, ५० ४९५
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