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________________ मरु-गुर्जर जैन साहित्य ४४३ यदि दोनों भाव एक ही हों तो अंबडरास का भी रचनाकाल इसी के आस-पास होगा । इस रचना में ९७५ पद्य हैं जिसमें लीलावती से विक्रम के पाणिग्रहण और उसके पुत्र का वृत्तान्त दिया गया है । भावो - ( भावउ ) आपके दो लघु गीत - नेमिगीत और गीत का विवरण श्री देसाई ने जै० गु० क० में दिया है । नेमिगीत मात्र ४ कड़ी का है और राग धन्यासी में निबद्ध है । इसमें लेखक ने अपना नाम भावउ दिया है, यथा "मुकुटि महि मइ केवडउ, केवडउ महि महि माउरे, भाव सहित भावउ भणइ, चउद भवन तिम राउरे ॥ T दूसरा गीत ३ कड़ी का है और वह भी धन्यासी राग में निबद्ध है । इसमें भी कवि ने अपना नाम भावउ ही लिखा है, यथा " अणुसरउ धर्म जिहां दया दीसइ, देखता मन मानइ वसा वीसइ, जोउ रे मारग मुगतिनउ महीया, ऊवट्ठउ पार न पामइ कहिया । X X X भाव कहइ भाव सहित सिंउ कीजइ, भामणां श्रीजिन धर्मना लीजइ । 2 इन गीतों में गेयता है और किसी प्रौढ़ कवि की रचनायें प्रतीत होती हैं। हो सकता है कि ये गीत भी उपरोक्त भाव उपाध्याय के ही हों किन्तु पुष्ट प्रमाणों के अभाव में भावउ या भावो और भाव उपाध्याय को एक मानने का साहस नहीं होता । यह विचारणीय प्रश्न है और यह भी असंभव नहीं है कि इन लघुगीतों के कर्त्ता भावो या भावउ अन्य कवि हों और उनकी बड़ी कृतियाँ अभी ग्रन्थ भंडारों में दबी पड़ी हों । -- भावकलश - आपकी रचना 'कृतकर्मचरित्ररास' के प्रारम्भ में सुमति विजय गणि को गुरु रूप में स्मरण किया गया है किन्तु अन्य विवरण न होने से यह निश्चय नहीं हो पाता कि ये सुमति गणि कौन से हैं । श्री देसाई ने इन्हें १६ वीं शताब्दी के कवियों में रखा है किन्तु कोई आधार नहीं बताया है । इस रास की प्रारम्भिक पंक्तियाँ उद्धृत की जा रही है— १. २. वही श्री देसाई - जै० गु० क०, भाग ३, प० ४६४ 'पढम पणमो पढम पणमो नामि मल्हार, संतीसर संतीकरण नमु नेमि गिरनार - नायक, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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