SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 459
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४४२ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद इतिहास दूहा -- 'अ प्रबन्ध श्रवणे सुणइ भणसइ जिन नरनारि, घर नवनिधि आंगणइ पामइ सुखसंसार । ३५४ | " अंबडरास -- यह रचना सात आदेशों में ( १६६ छंद) पूर्ण हुई है, इसका प्रथम छंद देखिये - आदिति किति आदिहि अछई, महिअलि मांहि जयवंत, कवि कहि त्रिपुरा सुणउ, चरण कमल प्रणमति ॥ ३ अन्त में कवि लिखता है - सीख हुई ते सीखयो न हीतरि गहन ज हंति, उवझाय भाव कहि, रखे कोइनि हिणंति । १६२ | 2 इससे लगता है कि इस रचना के समय तक भाव को उपाध्याय पद प्राप्त हो चुका था । अतः ये भाव उपाध्याय हैं । भाव उपाध्याय द्वारा रचित विक्रमचरित्ररास ' 'सं० १५८८ ' की सूचना श्री अगरचन्द नाहटा ने जैनमरुगुर्जर कवि और उनकी रचनायें नामक पुस्तक में दी है । संभव है कि अंबडरास के कर्त्ता और विक्रमचरित्ररास के कर्त्ता एक ही भाव उपाध्याय हों। इस रास के प्रारम्भ में विनय विमलगणि गुरुभ्यो लिखा है, यदि ये विमलगणि ही ब्रह्माणगच्छीय विमलसूरि हों तो निश्चय ही दोनों के कर्त्ता एक ही भाव उपाध्याय होंगे, यह विचारणीय प्रश्न है । ( विक्रम चरित्ररास ) का प्रथम छंद इस प्रकार है " नमो नमो तुम्ह चंडिका तुम्ह गुणकर न हुंति, एक चित्तइ जु समरता, सुख संपत्ति पामंति | 9 | इसमें सरस्वती के स्थान पर चंडिका और उनके द्वारा शुभ-निशुभ वध आदि का स्मरण जैन रचनाओं के लिए नवीन बात है । कवि ने अपना नाम उवझाय भाव दिया है, यथा --- श्री गुरुनी सानिधि थकी, अविरल वाणी होइ, उवझाय भाव कहइ मानवी संभलयो सहुकोइ । रचनाकाल का निर्देश करता हुआ कवि कहता है Jain Education International संवत पनर व्यासीइ तिथि वलि तेरसि होइ, मास मागसिर जाणयो, बारह रवि दिन जोइ । ६२ ।” १. श्री मो० द० देसाई - जै० गु० क० भाग ३ पृ० ६३४ श्री अ० च० नाहटा - जै० म० गु० क० २. , पृ० १४७ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy