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________________ ४३८ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास सुद्ध सरुप सहजि लिव निसदिन, झावउ अंतर झाणावे, जंपति बूचा जिम तुम्हि पावहु, वंछित सुख निरवाणावे । भुवनकीर्ति गीत में कवि ने अपने गुरु आचार्य भुवनकीर्ति की स्तुति की है। उनके संयम और चरित्र-शील का बखान करता हुआ कवि कहता है बूचराज मणि श्री रत्नकीति पाटिउ दयोसह गुरो, श्री भुवनकीति आसीखादहि संधु कलियो सुरतरो।। इन रचनाओं के अलावा बूचराज ने लगभग एक दर्जन छोटे-बड़े गीत भी लिखे हैं । इनमें से कुछ पर पंजाबी भाषा का पर्याप्त प्रभाव है, यथा 'वाले वलिवेहुं भावे, मनु माया धुलि राचा वे, वाले वलिवेहुं मावे रहइ आठ मदि मात्ता वे। इनके लघु गीतों में जिनेन्द्र के प्रति भक्ति, जगत की निस्सारता और मानव कर्तव्यों का स्मरण कराया गया है। अधिकांश गीत पंजाबी तर्ज और भाषा शैली से प्रभावित हैं । हो सकता है कि इनकी रचना कवि के पंजाब विहार के समय हुई हो। इनकी रचनाओं का प्रधान उद्देश्य आत्मविकास के साथ भक्तों और शिष्यों का मार्ग दर्शन है। विषय भोगों में डूबे राजपूतों और दम्भ तथा विलासिता के पुतले मुसलमानों को सावधान करता हुआ कवि अपने रूपक-काव्यों द्वारा मनुष्य को सच्चा मार्ग बताता है। वे एक जनकवि थे अतः सामान्य जनता को उद्बोधित करने के लिए उन्होंने ऐसी भाषा और काव्य शैली चुनी थी जिससे जनता पूरा लाभ उठा सके। इसीलिए इनकी भाषा में अलगाव नहीं बल्कि अनेक भाषाओं का सम्मिलित प्रयोग मिलता है। एक नमूने के साथ यह विवरण पूरा किया जायेगा "विणु रुजि भोयण जिसा बन्धरसि तिसि कहाणी, जिसा भाव विणु भगति तिसो मोती विणु पाणी । तैसों जु वीजु करमख योगि रही संपैवा घातिउ, कवि कहै वल्हे रे बुह्यपणह जिण सासण विजुगम इव । " १. डॉ० क० च० कासलीवाल-महाकवि बूचराज एवं उनके समकालीन कवि पृ० १०७ २. वही प० ११४ ३. वही, पृ० १२० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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