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________________ ४३४ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास 'जीववध असत्य व्रत अनइ चोरी, नारिनी संगतिपाप नीउरी, संभल उ प्राणीया अह विचार, मुगति तणां सुख ते लहइ सार ।' अन्त में इनकी लोकप्रियरचना 'जिन नेमिनाथ विवाहल की कुछ पंक्तियां दी जा रही हैं। नेमिनाथ के विवाह प्रसंग के वर्णन का लोभ शायद ही कोई समर्थ जैन कवि संवरित कर पाया होगा, पंक्तियां देखिए अ धवल रच्यउं मई आणी मनि आणंद, ब्रह्मचारी निरुपम गायउ नेमिजिणंद । पद अक्षर मात्रा हीणा कहिउं हइ जोय, पंडित जन जोइ निरतउं करज्यो तेम।" आदि इस कवि ने भास, रास, कुलक, धवल, विवाहलो, स्तोत्र, स्तवन, गीत आदि नाना काव्यरूपों का प्रयोग किया है । ब्रह्मबूचा (बूचराज)-आप भट्टारक भुवनकीर्ति के शिष्य थे किन्तु बहुत समय तक आप भ० प्रभाचन्द्र के प्रिय शिष्यों में रहे। आपने अपनी रचनाओं में अपने बारे में कुछ नहीं लिखा है। अपना कई नाम अवश्य प्रयुक्त किया है यथा-बूचा, बल्ह, वील्ह, वल्हव आदि। इन नामान्तरों के कारण इनकी रचनाओं के सम्बन्ध में भी काफी मतभेद की गून्जाइश रही है । आपने अधिकतर पंजाब और राजस्थान में विहार और धर्मोपदेश किया। डॉ० क० च० कासलीवाल ने सं० १५३० से सं० १६०० के आसपास की अवधि को आपका रचनाकाल बताया है।' उन्होंने आपकी निम्न रचनायें बताई हैं - ___ रचनायें-(१) मयणजुज्झ' ( १५८९ ), संतोषजय तिलकु १५९१ हिसार, बारहमासा नेमिश्वर, चेतनपुद्गलधमाल, नेमिश्वरवसन्तु, टंडाणा मीत और भुवनकीति गीत । इसके अतिरिक्त विभिन्न रागों में निबद्ध ११ गीत एवं पद भी प्राप्त हैं। भाषा-आपके रचनाओं की भाषा पुरानी हिन्दी (मरुगुर्जर) है जिसपर कहीं-कहीं राजस्थानी और पंजाबी का कुछ प्रभाव झलकता है। इनकी कृतियों को देखने से ये संस्कृत, प्राकृत. अपभ्रंश, हिन्दी, पंजाबी और राजस्थानी के अच्छे ज्ञाता प्रतीत होते हैं। आगे इनकी रचनाओं में से कुछ प्रमुख कृतियों का परिचय एवं उद्धरण दिया जा रहा है। १. डा० क० च० कासलीवाल-महाकवि बूचराज एवं उनके समकालीन कवि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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