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________________ ४३२ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास अन्त सासण देवता आपइ लंग, संजम पालइ ऋषि, ते मुनिवर नउमनि धरिनांम, हर्षइ 'ब्रम्हउ' करइ प्रणाम । सुधर्म गच्छ परीक्षा में नवगच्छ आरम्भ करने पर प्रकाश डाला गया है, यह शुद्ध साम्प्रदायिक रचना है किन्तु जैन साहित्य और धर्म के इतिहास की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण तथ्यों पर प्रकाश डालती है। इसका आदि और अन्त का छन्द प्रस्तुत है :आदि वीर नम कर अंजलि करी, साधूतणा गूणमनि संभरी, साचा धर्म परीक्षा भणी, विगति कहु काई गच्छ तणी, वीर तणा गणधर इग्यार, नव गच्छ तेहं तणा इमधार, पाँच गणधर ना गच्छ पंच, पंच पंचसय मुणिवर संच । अन्त गच्छाचार तणी चौपाइ, गाथा अकसो तिहुनेर थइ ओ सांभली सौधर्म गच्छ भजो, पाप मतिनी संगति तजो। इम जोइने जिणवर आण, सूत्र अर्थ सवि करो प्रणाम, अभिनिवेश मन नो परिहरो, ब्रह्म कहे जिम सिवसुख वरो।१७३। इस प्रकार १७३ छन्दों में सौधर्म गच्छ का उद्देश्य इस रचना द्वारा कवि ने स्पष्ट किया है। ___ नागिल सुमति चो० सं० १६१२ अर्थात् १७वीं शती की रचना है । इसमें रचना काल इस प्रकार बताया गया है : -- 'संवत सोले वारोत्तर, आसो सूदि सातमिदिन गूरे, नागिल सुमति तणी चौपइ, गुरु प्रसादि संपूरणथइ।६१४।' इसमें चौपाई और दोहा छंद प्रयुक्त हुआ है । इस में कवि ने अपना नाम ब्रह्म लिखा है । सुपार्श्व जिन विवाहलो सं. १६३२ की रचना है। इसमें अपना नाम विनयदेवसूरि लिखा है । लगता है कि इसी बीच आप ब्रह्ममुनि से विनयदेवसूरि हुए थे। भरतबाहुवलिरास (३२५) कड़ी सं० १६३४ की कृति है। इसमें भरत और बाहुवलि की सुपरिचित कथा दी गई है। यह रचना 'आवश्यक नियुक्ति' के आधार पर की गई है । रचनाकाल इस प्रकार कहा है : 'संवत सोल वरस चउत्रीस, करी चउपइ धरी जगीश, भणता गुणता मंगल करउ, जिहां जिनधर्म तां लगि विस्तरउ । साधु वंदना नामक कृति में १३८ कड़ियां हैं। इसमें सेठ सुदर्शन, कयवन्ना, यशोमती आदि साधु-साध्वियों की वंदना की गई है। १. श्री मो० द० देसाई-जै० गु० क० भाग ३ पृ० ६६८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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