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मरु-गुर्जर जैन साहित्य
४२३ को अपने प्रवचन द्वारा प्रभावित कर जैन श्रावक बनाया था। आपके नाम से पानचन्दगच्छ प्रवर्तित हआ। आप अपने समय के बड़े विद्वान लेखक उपदेशक जैनाचार्य हुए। ____ आपकी छोटी-बड़ी पचासों रचनाओं का विवरण श्री मो० द० देसाई ने जी० गु० क० में देकर बड़ा महत्त्वपूर्ण कार्य किया है, उसके आधार पर इनकी उल्लेखनीय रचनाओं की सूची दी जा रही है। तत्पश्चात् उनका विवरण-उद्धरण संक्षेप में दिया जायेगा। ____ ग्रन्थ सूची - साधुवन्दना, पाक्षिकछत्रीसी, अतिचारचौ०, चरित्र मनोरथमाला, श्रावकमनोरथमाला (प्र०), बस्तुपालतेजपालरास (प्र०) सं० १५९७, आत्मशिक्षा, आगमछत्रीसी, उत्तराध्ययनछत्रीसी. मुहपतिछत्रीसी. विवेकशतक, दूहाशतक, गुरुछत्रीसी. एषणाशतक, संघरंगप्रबंध, जिनप्रतिमास्थापन विज्ञप्ति, अमरद्वासप्ततिका, नियतानियत प्रश्नोत्तर प्रदीपिका, वंदनदोष, उपदेश रहस्य गीत, दंडकगर्भित पार्श्वनाथ स्तवन आराधनामोटी, आराधनानानी, खंधकचरित्र सज्झाय, आदीश्वर स्तवन विधिशतक, विधिविचार, निश्चयव्यवहार तवन, वीतरागस्त०, गीतार्थ पदावबोधकुल, अतिशयस्त०, वीसविहरमानजिनस्तुति, शान्तिजिनस्त०, रूपकमाला, एकादशवचन द्वित्रिंसिका, ब्रह्मचर्यदशसमाधि स्थान कुल, चित्रकूट चैत्य परिपाटी स्तनव, सत्तरभेदी पूजा गभित ११ बोल सं०, काउसग्गना १९ दोष, शत्रुजयस्तोत्र, भाषाछत्रीसी, केशिप्रदेशिबन्ध, वीरस्तवन, वीरलघुस्तवन, २९ भावना (प्र०), संक्षेप आराधना (प्र०) श्रावकविधि, सम्यकत्व स्वाध्याय, कल्याणक स्तवन (प्र०) और संवर कुलका आदि इनमें से कुछ चुनी हुई रचनाओं का विवरण और भाषा का नमूना आगे प्रस्तुत किया जा रहा है । आपने अधिकतर रचनाओं का नाम संख्यावाचक जैसे छत्रीसी, बत्रीसी, द्वात्रिंशिका १९ दोष, २९ भावना आदि रखा है । इनमें से आगम छ त्रीसी की बानगी प्रस्तुत हैआदि 'सुह गुरुचरण कमल प्रणमेसु, प्रवचन गुणह केविकहेसु,
श्रत बीजक जोइ जाणिये, नाम ग्रन्थ संख्या आणिये ।' अन्त 'इणिपरि सुविशाले पंचमकाले जे आगम गणि उद्धरिय,
पुस्तक लिखि राख्या जिणवरे भाख्या भवियण हित कारण करिय । तसुनाम पभणुं गुणइ पहाणं, बीजक जोइ स्मृति भविय,
चिहुंवर छंदिय मन आणंदिइ, पासचंद हरषिइं भणिय ।' १. श्री मो० द० देसाई-जे० गु० क० भाग १ पृ० १४० और भाग ३ पृ० ५९२
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