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मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद इतिहास प्रतिष्ठासोम-सं० १५२४ में आपने सोमसौभाग्य' नामक संस्कृत काव्य में प्रसिद्ध आ० सोमसुन्दरसूरि का चरित्र चित्रित किया है जिसमें अनेक ऐतिहासिक व्यक्तियों और स्थानों के संबंध में तथ्यपूर्ण विवरण उपलब्ध हैं। यह अति महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक कृति है। इसका मरुगुर्जर में अनुवाद प्रकाशित हो चुका है किन्तु प्रतिष्ठासोम मरुगुर्जर के मौलिक कवि नहीं हैं । अतः विवरण अपेक्षित नहीं है।'
पावचन्द्रसूरि--१६ वीं शताब्दी के अन्तिम चरण में मरुगुर्जर के महाकवि और समर्थ गद्यकार के रूप में आपका नाम जोन लेखकों में अग्रगण्य है। आपके नाम से पावचन्द्र गच्छ प्रसिद्ध हुआ जिसकी गद्दी बीकानेर में है। इस गच्छ का प्रसिद्ध उपाश्रय नागौर में भी है। आपका जन्म सिरोही राज्य के हमीरपुर निवासी वेलगशाह पोरवाड की पत्नी श्रीमती विमलादे की कुक्षि से सं० १५३७ में हुआ था। आपने आठ वर्ष की अवस्था में दीक्षा ली; तत्पश्चात् गहन अध्ययन एवं शास्त्राभ्यास करके १७ वर्ष की अवस्था में उपाध्याय और २८ वर्ष की अवस्था में आचार्य पद प्राप्त किया। सं० १६१२ में इनका जोधपुर में स्वर्गवास हुआ।
रचनाकार-गद्य और पद्य में आपकी शताधिक रचनायें प्राप्त हैं। उनमें से प्रायः रचनायें प्रकाशित हो चुकी हैं। श्री अ० च० नाहटा ने 'शोधपत्रिका' भाग १०, अंक १.२ में प्रकाशित अपने लेख में इनकी १४ गद्य बालावबोध भाषा-टीकाओं और ९२ पद्य बद्ध रचनाओं की सूची दी है। आपकी अधिकांश रचनायें सिद्धांत संबंधी हैं इसलिए कहीं कहीं काव्य पक्ष पिछड़ गया है लेकिन उनका ऐतिहासिक महत्त्व है। इनकी भाषा टीका में तत्कालीन गद्य भाषा (बोलचाल ) का स्वच्छ और प्रकृत स्वरूप प्राप्त होता है । अंग सूत्रों पर सर्वप्रथम आपकी ही भाषा टीकायें मिलती हैं।' आप समर्थ गद्यकार थे। आपकी गद्य रचनाओं का विवरण गद्य खंड में दिया जायेगा।
पार्श्वचन्दसूरि-आप जैनधर्म के बड़े प्रभावक आचार्य और प्रभावशाली उपदेशक थे। आपने मारवाड़ के राजा रावल गांगजी तथा युवराज माल. देव को प्रबोधित किया। इन्होंने राजपूतों के २२०० घरों को प्रतिबोध देकर ओसवाल श्रावक बनाया था । अनेक गांवों के माहेश्वरी (वैष्णव ) वर्णिकों १. श्री देसाई जैन--सा नो इतिहास, पृ० ५१६ २. श्री अ० च० नाहटा---राजस्थानी साहित्य का मध्य काल, परम्परा पृ० ६५
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