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________________ मरु-गुर्जर जैन साहित्य ४२१ क्रोध लोभ मोह मिला परहम, दान सील तप भावना करु, पातु (परबत) भणइ मे से बोलज खरुदया पालु जिम संसार तरु ।। इसकी भाषा में लोकोक्तियों और कहावतों का अच्छा प्रयोग भी हुआ है यथा 'हित कारणि अ बोलु अम्हो, जड करसु तो भोगवसु तह्मो । प्रारम्भ में सरस्वती की वन्दना करता हुआ कवि लिखता है :-- 'सरसति सामणि करु पसाउ, अह्म गासउं छोतिन उठाउ, पाखंडि म करसउ कोउ, सरता वर्तनू रूडु होइ।'' वरबत भावसार-परबत भावसार के नाम से 'चतुर्गतिचौपइ' नामक ४० कड़ी की एक रचना प्राप्त है परन्तु यह पता नहीं कि पातो (परबत ) और परबत भावसार दो कवि हैं या एक । इनकी रचनाओं का विषय भी प्रायः एक जैसा है और दोनों में चौपइ छन्द का प्रयोग हुआ है । इसके अन्तिम छन्द में लेखक का नाम इस प्रकार आया है 'नाचइं खेलइं गुण गाइं रास, तेह तणी प्रभु पूरइ आस, भाविइं भगतिइं जिण वर तणइ भावसारपरबत इम भणइ ।। इसके प्रारम्भ में अम्बिका की प्रार्थना की गई है, यथा : 'पहिल उं प्रणमउं अंबिकि माय, कहिस कवित्त ह त्रिभुवनराय, सुरनर गण गंधर्व विख्याय, लठन करइं ते नवग्रह पाय।' कवि ने इस कृति द्वारा यह सन्देश दिया है कि इसमें वर्णित विधि-निषेधों का अनुपालन करने से चतुर्गति में भ्रमण बंद हो सकता है और मोक्ष की प्राप्ति संभव हो सकती है; पंक्तियाँ देखिये : _ 'इणि परि चित्तवि धर्मजि करु, दान शील तप भाव जि धरु, दृढ़ समकित निश्चिई अणुसरु, चिहुं गति माहिबली नवि फिरु । भाषा, भाव, विषय-वस्तु, छंद-बंध की समानता के कारण यह अनुमान स्वाभाविक होता है कि शायद पातो (परवत) और परवत भावसार एक ही कवि हो। १. श्री मो० द० देसाई-जै० गु० क० भाग ३ पृ० ६४० २. वही ३. वही पृ० ६४१ ४. वही . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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